
दयाशंकर तिवारी और विकास ठाकरे (सौ. सोशल मीडिया )
Nagpur Municipal Elections: आरक्षण और राजनीतिक पेंच में फंसा मनपा चुनाव आखिरकार लगभग साढ़े तीन वर्ष बाद घोषित हो गया। इसके साथ ही शहर में सोमवार शाम से ही राजनीतिक चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया।
तारीखों की प्रतीक्षा कर रहे लोगों का धैर्य भी जवाब दे चुका था। भाजपा तो चुनाव का बेसन्नी से इंतजार कर रही थी। कांग्रेस ने भी अपनी तैयारियों को तेज कर दिया था। अब राजनीतिक दांव-पेंच और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू होगा।
23 दिनों की प्रत्यक्ष चुनाव प्रक्रिया में जो जीतेगा वही सिकंदर कहलाएगा। दो बड़े दलों के साथ-साथ अन्य छोटे-बड़े दलों ने भी चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। हर दिन चुनावी मोड में रहने वाली बीजेपी की तो गली से दिल्ली तक सत्ता है, बड़े मंत्रियों का साथ है लेकिन शहर कांग्रेस ‘विकास’ के भरोसे ही मैदान में उतरने वाली है।
राज्य में सत्ता में होने के कारण आचार संहिता घोषित होने के कुछ घंटे पूर्व ही बीजेपी नेताओं ने शहर में करोड़ों रुपये के विकास कार्यों का भूमिपूजन और लोकार्पण भी किया। शहर के विकास का एजेंडा भी तैयार किया गया है।
कांग्रेस ने भी भाजपा शासन काल में हुए कथित घोटालों, नागरिकों को हुई परेशानियों, मनपा में निजीकरण तथा विकास के मुद्दे को अपने प्रचार का केंद्र बनाने की तैयारी की है। भाजपा के पास गडकरी, फडणवीस, बावनकुले जैसे बड़े चेहरों के साथ नए दमदार नेता प्रवीण दटके, संदीप जोशी और अनुभवी कृष्णा खोपड़े, शहराध्यक्ष दयाशंकर तिवारी, मोहन मते आदि की टीम है।
कांग्रेस के पास ‘विकास’ का मुद्दा ही प्रचार का मुख्य हथियार होगा। शहर अध्यक्ष और विधायक विकास ठाकरे के इर्द-गिर्द ही कांग्रेस की चुनावी रणनीति घूमती है। पूर्व मंत्री और विधायक नितिन राऊत उत्तर नागपुर में बड़ी जीत दिलाने के लिए पूरी ताकत झोंकते हैं। पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता केवल नाम के लिए ही नजर आते हैं। विधायक वंजारी और गुडधे की भूमिका पर भी इस बार नजर रहेगी।
हमेशा महापौर बनने का सपना देखने वाली बसपा इस बार भी ‘एकला चलो’ की नीति पर स्वतंत्र रूप से मैदान में उत्तरेगी। उत्तर, दक्षिण, पश्चिम और पूर्व विस क्षेत्र में पार्टी ने जोर लगाया है। ‘संडे, मिशन डे’ का नारा देकर पिछले कुछ महीनों से पार्टी कैडर मतदाताओं में जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रहा है। बसपा का हाथी कितनी तेजी से चलता है और क्या वह इस बार 10 से आगे जाकर महापौर की कुर्सी तक पहुंचने का रास्ता बनाएगा, इस पर सभी की नजरें टिकी रहेंगी।
शहर में बड़ी संख्या में दलित मतदाता हैं। मनपा के 38 प्रभागों में से कम से कम 25 प्रभागों में ये वोट निर्णायक स्थिति में हैं। ये वोट एकजुट होकर किसी एक पार्टी को मिलते हैं, तो वह पार्टी मजबूत स्थिति में आ सकती है।
रिपा के विभिन्न गुट इस बार अस्मिता के नाम पर एकजुट होंगे या फिर पहले की तरह दूसरों के साथ जाएंगे, इस पर सभी की नजर है। मुस्लिम लीग और एमआईएम को मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन माना जाता है। यह वोट भी एकजुट होगा या नहीं, इस पर काफी कुछ निर्भर करेगा। कई छोटे-बड़े मोर्चे और संगठन भी मैदान में उतरकर अपनी ताकत आजमाएंगे।
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वंचित बहुजन आघाड़ी चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ेगी या कांग्रेस के साथ जाएगी, इस पर फिलहाल चर्चा जारी है। कुछ समय पूर्व मनपा और जिला परिषद चुनाव साथ लड़ने पर चर्चा हुई थी। आगे क्या निर्णय होगा, इस पर सभी की नजर रहेगी।
इसी तरह महायुति में शामिल राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजीत पवार गुट) और शिवसेना (शिंदे गुट) की भूमिका क्या होगी, लोगों की नजरें हैं। अगर महायुति में सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं तो वे अकेले दम पर मैदान में उतर सकती हैं। यह भी चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकता है। वहीं महाविकास आघाड़ी में शामिल राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार गुट) और शिवसेना (ठाकरे गुट) की भूमिका पर भी सभी की नजरें टिकी रहेंगी।






