महायुति सरकार को अपनों का झटका (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Maharashtra Assembly News: महाराष्ट्र की महायुति सरकार को अब विपक्ष के साथ-साथ अपने ही विधायकों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। शीतकालीन सत्र के दौरान पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सुधीर मुनगंटीवार तथा नरहरी झिरवल ने खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) के कामकाज पर सवाल उठाए थे। अब उपमुख्यमंत्री अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधायक राजकुमार बड़ोले ने भी सरकार पर नाराजगी जताई है।
बड़ोले ने विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को पत्र लिखकर बहुजन समाज, अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़े वर्ग से जुड़े मुद्दों को सदन की कार्यवाही में स्थान न दिए जाने पर गहरी आपत्ति दर्ज कराई है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय विभाग, आदिवासी विकास विभाग, बहुजन कल्याण विभाग और दिव्यांग कल्याण विभाग से संबंधित किसी भी प्रश्न को कार्यवाही में शामिल नहीं किया जा रहा है।
अपने पत्र में बड़ोले ने उल्लेख किया है कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, महात्मा फुले और छत्रपति शाहू महाराज ने शोषित, वंचित और बहुजन समाज के अधिकारों के लिए जो विचार प्रस्तुत किए थे, उनके अनुरूप इन समुदायों से जुड़े मुद्दों को विधानसभा की कार्यवाही में स्थान मिलना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, आदिवासी और बहुजन समाज से संबंधित कई प्रश्न विधायकों द्वारा नियमानुसार प्रस्तुत किए गए हैं, लेकिन उन्हें कार्यवाही में शामिल नहीं किया जा रहा, जो बेहद गंभीर और चिंताजनक है।
इससे पहले शुक्रवार को सदन में हुई चर्चा के दौरान भाजपा के ही विधायकों ने एफडीए के कामकाज पर कड़ा प्रहार किया था। विधायक विक्रम सिंह पाचपुते ने एफडीए की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए राज्य में कफ सिरप से 25 बच्चों की मौत का मुद्दा उठाया था।
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सुधीर मुनगंटीवार ने कहा कि उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने एफडीए के लिए 200 करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक केवल 30 करोड़ रुपये ही उपलब्ध कराए गए हैं। उन्होंने सरकार की गंभीरता पर सवाल उठाते हुए कहा कि घोषणाएं तो की जाती हैं, लेकिन उनके अनुरूप धनराशि नहीं दी जाती। मुनगंटीवार ने आरोप लगाया कि सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। केवल 90 अधिकारियों पर कार्रवाई चल रही है, जबकि नए अधिकारी प्रशिक्षण लेकर नियुक्ति की प्रतीक्षा में हैं। नरहरी झिरवाल ने भी एफडीए के ढीले-ढाले कामकाज को स्वीकार करते हुए इसमें सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया था।