
सुप्रीम कोर्ट (सोर्स: सोशल मीडिया)
Maharashtra Nikay Chunav Reservation Issue: आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक होने पर सर्वोच्च न्यायालय ने नागपुर जिला परिषद में ओबीसी वर्ग से चुनकर आए सदस्यों की सदस्यता रद्द कर दी थी। उसके बाद सभी सीटों को सामान्य वर्ग में समायोजित कर नई चुनाव प्रक्रिया कराई गई। अब फिर से नगर पंचायत और नगर परिषद चुनावों में आरक्षण 50 प्रतिशत तक पहुंच गया है तथा चुनाव कार्यक्रम भी घोषित हो चुका है।
ऐसे में जिला परिषद की स्थिति नगर पंचायत और नगर परिषद में भी दोहराए जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है। यदि ऐसा होता है, तो उम्मीदवारों को वर्ष भर या डेढ़ वर्ष में फिर से चुनाव का सामना करना पड़ेगा और भारी खर्च भी उठाना पड़ेगा। ऐसी चिंता जताई जा रही है। अतः इस मामले में न्यायालय क्या निर्णय देगा, इसी पर सभी की निगाहें टिकी हैं।
नगर परिषद और नगर पंचायतों के चुनाव कार्यक्रम जारी हो चुके हैं। इन चुनावों के साथ ही जिला परिषद और महानगर पालिकाओं में भी आरक्षण 50 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
राज्य चुनाव आयोग द्वारा तय किए गए आरक्षण के फॉर्मूले के मुताबिक आरक्षण की सीमा स्वाभाविक रूप से 50 प्रतिशत पर ही जाती है। आरक्षण सीमा बढ़ने पर सर्वोच्च न्यायालय ने आयोग को कड़ी फटकार लगाई थी और चुनाव स्थगित करने तक की चेतावनी दी थी।
दूसरी ओर राजनीतिक दलों और नेताओं ने चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। कुछ स्थानों पर उम्मीदवारों को डरा-धमकाकर या छुपाकर रखने जैसी शिकायतें भी सामने आ रही हैं। उम्मीदवारों ने प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है और खर्च भी खूब हो रहा है।
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दूसरी ओर यह भी संभावना जताई जा रही है कि संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया ही रुक सकती है और यदि चुनाव संपन्न भी हुए, तो आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक होने के कारण विजयी उम्मीदवारों पर लगातार संकट मंडराता रहेगा।
इससे पहले नागपुर सहित 6 जिलों की जिला परिषदों में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत पार होने का मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित था। इसलिए वर्ष 2020 में हुए चुनावों के दौरान प्रत्याशियों से यह लिखित सुरक्षा-पत्र लिया गया था कि वे न्यायालय के निर्णय के अधीन रहकर ही चुनाव लड़ रहे हैं। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण सीमा पार होने के कारण ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया था।
परिणामस्वरूप ओबीसी वर्ग की सभी सीटों को सामान्य वर्ग में परिवर्तित किया गया और मात्र डेढ़ वर्ष में फिर से उपचुनाव कराने पड़े। पहले चुने गए कई सदस्य उपचुनाव में हार गए थे, जिससे उन्हें भारी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा था।






