मनपा स्कूल (सौजन्य-सोशल मीडिया, कंसेप्ट फोटो)
Nagpur News: मनपा के स्कूलों में पढ़ने के बाद कई छात्र आईएएस करने के बाद राज्य सरकार की सेवाओं में सचिव पद तक पहुंच गए हैं। इसके बावजूद मराठी माध्यम के प्राइमरी स्कूलों को नजरअंदाज किया जा रहा है। यहां तक कि 53 स्कूलों में से 23 स्कूलों के बंद होने को लेकर अखिल भारतीय दुर्बल समाज विकास संसाधन की ओर से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई।
गुरुवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान पुन: सरकारी पक्ष की ओर से जवाब दायर करने के लिए समय मांगे जाने पर हाई कोर्ट ने अंतिम मौका प्रदान करते हुए 8 सितंबर तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी। याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि आवश्यक छात्र नहीं मिलने के कारण बंद किए गए 34 मराठी स्कूलों में से प्रायोगिक तत्व पर 3 स्कूलों को शुरू तो किया गया किंतु मनपा द्वारा इन तीनों स्कूलों पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आशुतोष धर्माधिकारी ने पैरवी की।
याचिकाकर्ता ने याचिका में बताया कि एक ओर देश भर में बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का नारा दिया जा रहा है तो दूसरी ओर मनपा के मराठी माध्यम के स्कूलों के बंद होने से विशेष रूप से बच्चियों पर इसका विपरीत असर पड़ रहा है। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता धर्माधिकारी की ओर से दस्तावेज पेश कर अदालत का ध्यानाकर्षित किया गया।
इसमें संस्था के अध्यक्ष द्वारा ली गई जानकारी का लेखा-जोखा दिया गया। इसके अनुसार अब तक मनपा क्षेत्र में 23 स्कूलों के बंद होने की जानकारी प्रशासन की ओर से दी गई। याचिकाकर्ता का मानना था कि इस संदर्भ में मनपा को कई बार ज्ञापन भी सौंपा गया लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। अलबत्ता मजबूरन हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
समाचार पत्रों में छपीं खबरों का हवाला देते हुए अदालत को बताया गया कि प्रशासन की बेरुखी के चलते इन शालाओं पर ताले पड़ रहे हैं। सरकार और मनपा की ओर से ध्यान नहीं दिए जाने के कारण स्कूलों की हालत खराब हुई है। हालत यह है कि कुछ स्कूल संचालित तो हो रहे हैं लेकिन परिसर में असामाजिक तत्वों का डेरा लगा रहता है।
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कुछ स्कूलों में तो आवारा पशुओं का डेरा रहता है। अदालत को बताया गया कि गत 5 वर्षों में भारी मात्रा में मनपा के स्कूलों की संख्या में कमी आई है जबकि कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार शिक्षकों की संख्या में वृद्धि दिखाई दे रही है।