शालार्थ आईडी घोटाले में आईडी घोटाला (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Nagpur News: हाई कोर्ट ने फर्जी शालार्थ आईडी बनाकर सरकारी खजाने को 145 करोड़ से अधिक का नुकसान पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार पूर्व शिक्षा उपसंचालक चिंतामन गुलाबराव वंजारी, सतीश मेंढे और पूर्व अधीक्षक नीलेश वाघमारे की जमानत याचिका खारिज कर दी है। उल्लेखनीय है कि वंजारी को 22 मई 2025 को साइबर पुलिस स्टेशन नागपुर में दर्ज मामले में गिरफ्तार किया गया था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार शिक्षा उपसंचालक, नागपुर मंडल के कार्यालय में जूनियर प्रशासकीय अधिकारी के रूप में कार्यरत रवींद्र पाटिल द्वारा दर्ज कराई गई एक रिपोर्ट के आधार पर मामला दायर किया गया था। शिकायत के अनुसार कार्यालय को निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों द्वारा फर्जी शालार्थ आईडी बनाने और उनके आधार पर वेतन निकालने की शिकायतें मिली थीं, जबकि ये स्कूल अस्तित्व में ही नहीं थे। इसकी जांच के लिए 23 अगस्त 2024 को एक समिति का गठन किया गया था।
जांच में खुलासा हुआ कि शिक्षा उपसंचालक कार्यालय द्वारा शालार्थ आईडी बनाए बिना ही, ऑनलाइन आईडी और पासवर्ड का बेईमानी से उपयोग करके 20 मार्च 2019 से फर्जी आईडी बनाए जा रहे थे। शिकायत में 680 फर्जी आईडी की सूची सत्यापित की गई जिनके लिए मूल आदेश पारित नहीं किए गए थे।
अभियोजन पक्ष के अनुसार चिंतामन वंजारी 13 जून 2018 से 24 दिसंबर 2021 तक शिक्षाधिकारी (प्राथमिक), नागपुर मंडल, नागपुर के कार्यालय के प्रभारी थे। उनके कार्यकाल के दौरान निजी सहायता प्राप्त और आंशिक रूप से सहायता प्राप्त शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के संबंध में 253 फर्जी शालार्थ आईडी बनाई गईं।
आरोप है कि वंजारी ने प्रस्तावों का सत्यापन नहीं किया और अपने वित्तीय लाभ के लिए सह-अभियुक्तों के साथ मिलकर उन पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने 9 मार्च 2019 के सरकारी प्रस्ताव का भी पालन नहीं किया और अवैध अनुमोदन आदेश पारित किए।
वंजारी की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अक्षय नाईक ने तर्क दिया कि 20 मार्च 2019 के सरकारी प्रस्ताव के अनुसार सहायता प्राप्त स्कूलों के शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के नाम ‘शालार्थ’ प्रणाली में दर्ज करने का अधिकार मंडल के शिक्षा उपसंचालक के पास निहित है। उन्होंने यह भी बताया कि ‘शालार्थ’ प्रणाली 7 नवंबर 2012 को शुरू की गई थी जिसमें डेटा अपलोड करने की जिम्मेदारी संबंधित स्कूल के प्रधानाध्यापक की थी और उसके बाद सत्यापन और प्रमाणीकरण विभिन्न अधिकारियों और पे यूनिट द्वारा किया जाता था।
वकील ने कहा कि शिक्षाधिकारी का काम केवल डेटा पर हस्ताक्षर करना था, न कि उसे सत्यापित या प्रमाणित करना। उन्होंने तर्क दिया कि वंजारी की भूमिका सीमित थी और इसलिए उनकी आगे की हिरासत की आवश्यकता नहीं है।
नीलेश वाघमारे की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता फिरदौस मिर्जा ने कहा कि याचिकाकर्ता की भूमिका काफी सीमित है। वह केवल अधीक्षक के रूप में शिक्षा उपसंचालक में कार्यरत था। उसे किसी भी तरह की मंजूरी देने का कोई अधिकार भी नहीं था। पूर्व उपसंचालक सतीश मेंढे की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल मार्डीकर ने कहा कि 1 जनवरी 2019 से लेकर 1 मार्च 2020 तक मेंढे बतौर उपसंचालक इंचार्ज के रूप में जिम्मेदारी संभाल रहे थे।
31 मई 2020 को वह सेवानिवृत्त भी हो गए। मुख्य सरकारी वकील देवेन चौहान ने जमानत याचिका का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि अभियुक्त ने वित्तीय लाभ के लिए जानबूझकर सत्यापन नहीं किया। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में 2012 से शिक्षकों की भर्ती नहीं की गई है। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि जांच बहुत महत्वपूर्ण चरण में है और इस अपराध में बड़े पैमाने पर नुकसान शामिल है जिससे सरकारी खजाने को भारी क्षति हुई है। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों के बाद कहा कि जांच प्रारंभिक और महत्वपूर्ण चरण में है और इसमें सरकारी खजाने को ₹145,88,31,698 रुपए का भारी नुकसान हुआ है।
हाई कोर्ट ने एक ओर से जहां वंजारी, मेंढे और वाघमारे को जमानत देने से साफ इनकार कर दिया गया वहीं पूर्व प्रभारी उपसंचालक डॉ. वैशाली जामदार की गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए नियमित जमानत भी प्रदान की। कोर्ट ने कहा कि जामदार को गिरफ्तारी के आधार (कारण) नहीं बताए गए थे जो संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
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जांच के दौरान यह उजागर हुआ था कि डॉ. जामदार ने सह-आरोपियों को 211 फर्जी आईडी बनाने का निर्देश दिया था जिससे उन व्यक्तियों के वेतन और बकाया भी निकाला गया। जामदार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील मनोहर ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने केवल संबंधित शिक्षाधिकारी द्वारा अग्रेषित प्रस्तावों के आधार पर ऑफ़लाइन आदेश जारी किए थे और उन्होंने वास्तव में 48 व्यक्तिगत अनुमोदनों को अस्वीकार कर दिया था। दोनों पक्षों की दलीलों के बाद कोर्ट ने 1 लाख रुपए के निजी मुचलके पर डॉ. जामदार को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।