शोध से उपजा ‘सोना’। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नागपुर: ज्वार मोटे अनाजों में एक महत्वपूर्ण फसल मानी जाती है। यह न्यूनतम संसाधनों में, विभिन्न मौसम और भौगोलिक परिस्थितियों में, विशेषकर सूखा जैसे हालातों में, अनाज के साथ चारा भी प्रदान करती है। कुछ वर्षों पहले तक ज्वार की रोटी आम जनजीवन का मुख्य आहार हुआ करती थी। आज इसकी जगह कुछ हद तक गेहूं ने ले ली है। लेकिन भारत में ज्वार के क्षेत्रफल और उत्पादन में महाराष्ट्र का पहला स्थान है।
ज्वार को एक ऐसी फसल माना जाता है जो कम लागत में हर मौसम और हर इलाके में उगाई जा सकती है। इसे और अधिक उत्पादनक्षम बनाने तथा चारे की गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से कई वैज्ञानिक और शोधकर्ता कार्यरत हैं। इसी दिशा में, महात्मा ज्योतिबा फुले अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (महाज्योती) के शोधकर्ता डॉ. गजानन हनुमंतराव नाइक ने ‘पीली ज्वार’ पर आधारित एक अत्यंत उपयोगी और सफल शोध किया है।
महाज्योती संस्था ओबीसी, वीजेएनटी, एसबीसी वर्ग के पीएचडी शोधार्थियों को स्कॉलरशिप के माध्यम से आर्थिक सहयोग प्रदान कराती है। परभणी स्थित वसंतराव नाइक मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय के तहत, डॉ. नाइक ने “पीले परिकर्प ज्वार (सोरघम बाइकलर एल. मोन्च) में प्रेरित उत्परिवर्तन पर अध्ययन” विषय पर शोध किया। कृषि वनस्पति विभाग के प्रमुख प्रा. डॉ. एच. वी. काळपांडे के मार्गदर्शन में उन्होंने तीन वर्षों में यह शोधप्रबंध सफलतापूर्वक पूरा किया।
नागपुर स्थित महाज्योती के मुख्य कार्यालय में शुक्रवार को संस्थान के प्रभारी प्रबंध निदेशक प्रशांत वावगे के हाथों डॉ. गजानन नाइक को पदक और सम्मान-वस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर लेखाधिकारी रश्मी तेलेवार भी उपस्थित थीं। डॉ. नाइक ने बताया कि ज्वार ऊर्जा, रेशे, स्टार्च, प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की आपूर्ति करने वाला एक सस्ता और प्रमुख आहार स्रोत है। अपने शोध में उन्होंने अधिक उत्पादनक्षम और बेहतर चारे की गुणवत्ता वाली पीली ज्वार की किस्में विकसित करने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की सहायता से विकिरण तकनीक का प्रयोग कर पीली ज्वार में आनुवंशिक परिवर्तन किए।
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इन बदलावों के चलते उन्होंने कुछ ऐसी प्रजातियां विकसित की हैं जो अधिक उत्पादन दें, सूखा झेल सकें और चारे की गुणवत्ता में भी बेहतरीन हों। यह भविष्य में किसानों के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होंगी। डॉ. नाइक ने महाज्योती के प्रभारी प्रबंध संचालक प्रशांत वावगे का सहयोग के लिए आभार प्रकट किया और अपने माता-पिता हनुमंतराव नाइक व संगीताबाई नाइक के आशीर्वाद का भी उल्लेख किया। उन्होंने विश्वास जताया कि भविष्य में भी महाज्योती से मिलने वाली फेलोशिप्स का लाभ शोधार्थियों को मिलता रहेगा।
महाज्योती के अध्यक्ष और अन्य पिछड़ा वर्ग बहुजन कल्याण मंत्री अतुल सावे ने पीली ज्वार पर सफल शोध करने वाले डॉ. गजानन नाइक की सराहना की। उन्होंने कहा कि महाज्योती संस्था ओबीसी, वीजेएनटी, एसबीसी वर्गों के पीएचडी शोधार्थियों को स्कॉलरशिप और आर्थिक सहायता प्रदान करने का सराहनीय कार्य कर रही है, जिससे विद्यार्थी विभिन्न क्षेत्रों में सफल शोध कर पा रहे हैं। कृषि विज्ञान पर डॉ. गजानन नाइक द्वारा किया गया यह शोध अत्यंत प्रशंसनीय है। इससे ज्वार पर आधारित नई, अधिक उत्पादन देने वाली और उच्च गुणवत्ता वाला चारा देने वाली किस्में विकसित की जा सकेंगी, जो भारत जैसे कृषि प्रधान देश को प्रगति के मार्ग पर ले जाएंगी।
उन्होंने कहा कि यह शोध किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी साबित होगा और डॉ. नाइक ने महाज्योती के साथ देश का भी गौरव बढ़ाया है। मंत्री सावे ने जानकारी दी कि अब महाज्योती द्वारा जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) के लिए 37 हजार तथा सीनियर रिसर्च फेलोशिप (एसआरएफ) के लिए 42 हजार प्रति माह दिए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त आवास भत्ता भी क्रमशः 30%, 20%, और 10% की दर से प्रदान किया जा रहा है। पीएचडी शोधार्थियों की उत्कृष्ट उपलब्धियां देश को प्रगति की ओर ले जाएंगी, ऐसी प्रतिक्रिया मंत्री अतुल सावे ने दी और डॉ. नाइक को उनके भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं।