फुटपाथ पर अतिक्रमण ही अतिक्रमण (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Nagpur News: देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सार्वजनिक स्थानों से अतिक्रमण हटाने को लेकर सख्त रुख अपनाया है। सुको की इस नाराजगी का सबसे पुख्ता सबूत नागपुर शहर के फुटपाथ है जहां अतिक्रमण इस कदर जड़ जमा चुका है कि लोगों के पैदल चलने का संवैधानिक अधिकार तक छिन लिया गया है।
शहर के प्रमुख बाजार क्षेत्रों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और अस्पतालों ही नहीं, बल्कि न्यायालय, जिलाधिकारी कार्यालयों, पुलिस स्टेशनों के सामने भी फुटपाथ सांस नहीं ले पा रहे। यहां से फुटपाथ पूरी तरह अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं। परिणामस्वरूप आम नागरिकों को सड़कों पर चलने को मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे उनकी जान को भी खतरा बना रहता है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को आखिरी चेतावनी देते हुए कहा कि यदि पैदल चलने के संवैधानिक अधिकार की रक्षा नहीं की गई, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट ने 2 वर्ष पहले ही आदेश जारी कर कहा था कि फुटपाथ सिर्फ पैदल चलने वालों के लिए होने चाहिए, न कि दूकानों, ठेलों या वाहनों के अवैध कब्जों के लिए। लेकिन इसके बावजूद अब तक देशभर में 10,000 से अधिक मामले अतिक्रमण से जुड़े सामने आए हैं, जिनमें नागपुर भी एक प्रमुख उदाहरण है।
नागपुर के एम्प्रेस मॉल, सीताबर्डी, गिट्टीखदान, इतवारी, हनुमान नगर, मेयो, मेडिकल, एसटी स्टैंड, रेलवे स्टेशन जैसे परिसर जैसे इलाकों में फुटपाथों पर दूकानदारों, ठेलेवालों, खाने के स्टॉल और यहां तक कि अस्थायी निर्माण तक कब्जा किए हुए हैं। इन फुटपाथों का असली उद्देश्य पैदल चलने वालों की सुविधा को पूरी तरह समाप्त हो चुका है। लोगों को मुख्य सड़कों पर चलना पड़ता है, जिससे ट्रैफिक जाम, दुर्घटनाओं और असुरक्षा की स्थिति पैदा होती है।
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यह स्थिति साफ तौर पर राज्य सरकार और महानगर पालिका की असफलता को दर्शाती है। कई बार अतिक्रमण हटाने के अभियान केवल दिखावे तक सीमित रहते हैं। कुछ ही समय बाद वही दुकानदार, ठेलेवाले दोबारा अपनी जगह पर लौट आते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति का अभाव है या फिर स्थानीय नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत से यह अतिक्रमण पनप रहा है।