सुनील केदार व अश्विन बैस (कॉन्सेप्ट फोटो)
Nagpur Politics: महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव का बिगुल बजने को है। सर्कल रचना की प्रक्रिया पूरी हो ही गई है और अब तो अदालत ने ओबीसी आरक्षण पर भी निर्णय दे दिया है। चुनाव आयोग अपने काम पर लगा है तो वहीं नागपुर जिले में कांग्रेस ने भी अपना अभियान शुरू कर दिया है। वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा को पराजित कर पूर्ण बहुमत से जिला परिषद में कब्जा जमाने वाली कांग्रेस ने दोबारा वापसी को अपना टारगेट रखा है।
लोकसभा में रामटेक सीट की यादगार जीत के बाद हालांकि विधानसभा क्षेत्र में मिली अप्रत्याशित हार से कई दिनों तक पार्टी के नेता, पदाधिकारी व कार्यकर्ता तक सदमे में रहे लेकिन अब फिर नये सिरे से नेता-कार्यकर्ता सक्रिय हो गए हैं।
ग्रामीण भागों में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठकों का दौर शुरू हो गया है। संगठन को मजबूत करने के लिए नये चेहरों को जोड़ने का प्रयास भी जारी है। जिला परिषद में अपना कब्जा बरकरार रखने के साथ ही नगर परिषद व नगर पंचायतों में अपना परचम लहराने की रणनीति तैयार की जा रही है।
प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने पदभार संभालते ही सबसे पहले कार्यकारिणी की नये सिरे से रचना पर बल दिया। प्रदेश कार्यकारिणी में उन्होंने युवाओं का समावेश करने का काम किया ताकि नया जोश संगठन में आए। जिलाध्यक्ष के रूप में एक नये चेहरे के रूप में अश्विन बैस को आगे किया गया है।
पार्टी का मानना है कि इससे युवाओं में आशा का संचार हुआ है और उनमें चुनाव के समय अधिक से अधिक उम्मीदवारी मिलने की अपेक्षा जागी है। वे अपने-अपने सर्कल में सक्रिय भी हो गए हैं ताकि नेताओं का ध्यान उन पर रहे। भीतरखाने की मानें तो पार्टी इस बार 60 फीसदी युवा चेहरों को मैदान में उतारने वाली है ताकि सेकंड लाइन का नेतृत्व तैयार किया जा सके।
नागपुर जिले में सुनील केदार ही कांग्रेस के ऐसे नेता हैं जिन्होंने मोदी लहर में भी चुनाव जीतकर पार्टी की लाज बचाई थी। उन्होंने 2019 के चुनाव में भी सफलता पायी थी। भाजपा का भगवा झंडा जिला परिषद से उतारने वाले केदार ही थे। उनका गुट पूर्ण बहुमत से जिला परिषद की सत्ता में बैठा था। बाद में शिक्षक निर्वाचन व स्नातक निर्वाचन क्षेत्र चुनाव में भी अपने दम पर भाजपा को करारी शिकस्त दी थी।
लोकसभा चुनाव में श्याम बर्वे को रामटेक सीट से विजयी कर अपनी दमदारी साबित की थी। कई तरह के नाटकीय घटनाक्रमों के चलते सुनील केदार पिछला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ पाये व अपनी सीट से उन्हें हाथ धोना पड़ा। बावजूद इसके कांग्रेस ने उन पर भरोसा जताया है। स्थानीय निकाय चुनाव उनके ही नेतृत्व में पार्टी लड़ने वाली है। उनके ही गुट के अश्विन बैस को जिलाध्यक्ष पद दिये जाने से यह संदेश महकमे में गया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री राजेन्द्र मूलक के विधानसभा चुनाव में बागी हो जाने के बाद उन्हें पार्टी ने 6 वर्षों के लिए निलंबित कर दिया था। उसके बाद सीनियर पदाधिकारी बाबा आष्टणकर को प्रभारी जिलाध्यक्ष बनाया गया जो कुणबी समाज से आते हैं।
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कयास यह था कि आष्टणकर को ही जिलाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी लेकिन बैस को यह जिम्मेदारी दे दी गई जो केदार के करीबी हैं। पार्टी के इस निर्णय से अन्य गुटों में भारी असंतोष देखा जा रहा है।
दबी जुबान अनेक सीनियर कह रहे हैं कि क्या जिले में केवल एक केदार गुट है जो पार्टी के लिए काम करता है। कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ता इस उम्मीद में थे कि उन्हें मौका मिलेगा। उनका तर्क है कि वे 25-30 वर्षों से पूरी निष्ठा से पार्टी के साथ हैं। क्या सिर्फ दरी-कुर्सी लगाने-उठाने का कार्य करने के लिए हैं?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कि आष्टणकर के साथ इसलिए अन्याय किया गया क्योंकि केदार गुट उनका नेतृत्व पसंद नहीं करता। आष्टणकर द्वारा बुलाई जाने वाली किसी भी बैठक में यह गुट हमेशा नदारद रहा करता था। उनके साथ अन्य गुट में भी असंतोष है जिससे निपटना बड़ी चुनौती होगी।