मगरमच्छ के बसेरे के पास नागरिकों का निवास (AI Generated Photo)
Maharashtra News: पारशिवनी तहसील अंतर्गत किरंगी छर्रा गांव के नागरिकों की स्थिति भी घाटपेंढरी गांव के जैसे ही हो गई हैं। किरंगी छर्रा गांव के नागरिकों का मतदान तो पारशिवनी तहसील के तहत आता है, परंतु दैनिक जीवन के सभी प्रयोग की वस्तुओं के लिए रामटेक तहसील पर निर्भर रहना पड़ता है। इसीलिए पिछले कई दशक से कोलितमारा-किरंगी छर्रा गांव के बीच पुल बनाने की मांग की जा रही है।
पारशिवनी तहसील की कोलितमारा ग्राम पंचायत के अंतिम गांव के रूप में किरंगी छर्रा गांव का समावेश है। इस गांव में वर्तमान समय में लगभग 300 नागरिकों का परिवार अपना गुजारा करता है। यह गांव पेंच नदी के किनारे पर बसा हुआ है। पेंच नदी जिसमें दर्जनों की संख्या में मगरमच्छ पाए जाते हैं। इस गांव के नागरिक मतदान के लिए तो पारशिवनी तहसील के अंतर्गत कोलितमारा ग्राम पंचायत के लिए करते है।
कोलितमारा के सरपंच के मध्यम से ही किरंगी छर्रा गांव के नागरिकों के लिए सरकारी सुविधा पहुंचती है। किरंगी छर्रा गांव के नागरिकों को जहां पेंच नदी के किनारे रहने के कारण मगरमच्छ का खतरा रहता है, वहीं पर दूसरे छोर पर रामटेक का कोर जोन होने के कारण जंगली एवं हिंसक पशुओं का भी भय सतत बना रहता है। इस गांव में जाने के लिए आज भी वर्षों पुरानी परंपरागत नाव के सहारे करंगी छर्रा से कोलितमारा आना पड़ता है।
एक किमी लंबी इस पेंच नदी के पाट को पार करने में गांव के नागरिकों को लगभग एक घंटे का समय लगता है। गांव के नागरिकों को बारिश के समय और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं। इस गांव की एक महिला को 2010 में मगरमच्छ द्वारा अपना निवाला बनाया गया था। लगभग 30 वर्ष पूर्व भी इस गांव में आए बारातियों की नाव पलटने के कारण इस पेंच नदी में 14 नागरिक डूब गए थे, जिनकी मौत हो गई थी।
इस घटना को लेकर आज भी भ्रम है, कि उनकी मौत डूबने से हुई थी या मगरमच्छों ने अपना निवाला बना लिया था। इसी क्रम में 2011 में भी मगरमच्छ द्वारा एक युवती पर हमला किया गया था, जिसमें युवती गंभीर घायल हो गई थी, बाद में उपचार के दौरान उस युवती की दर्दनाक मौत हो गई थी।
इस गांव में रहने वाले नागरिकों की पूरी दिनचर्या रामटेक तहसील के अंर्तगत आने वाले पवनी के ऊपर निर्भर है। इस गांव के नागरिकों को गेहूं पिसाने से लेकर सब्जी, दाल, कपड़े, शादी-ब्याह का सामान से लेकर हर वह वस्तु जो जीवन के लिए उपयोगी है उस वस्तु के लिए पवनी, रामटेक या मनसर जाना पड़ता है। रामटेक तहसील में जाना भी इन नागरिकों के लिए इतना आसान नहीं हैं।
इस गांव में वर्तमान समय में 139 पुरुष एवं 127 महिलाएं अपना जीवनयापन करते है। इस गांव के नागरिकों को यदि पारशिवनी तहसील में प्रशासनिक काम से आना पड़ा तो पहले किरंगी छर्रा से कोलितमारा नाव द्वारा पहुंचना पड़ता है। उसके बाद कोलितमारा से पारशिवनी के लिए बस मिलती है। इस पूरी प्रक्रिया में पूरा एक दिन गुजर जाता हैं।
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एक ओर जहां आदिवासियों के विकास के लिए राज्य एवं केंद्र से करोंड़ों रुपए की विकास निधि आती है, वहीं पर आजादी के 78 साल बाद भी किरंगी छर्रा गांव के नागरिकों को मुलभूत सुविधा नहीं मिल पा रही है। इस आशय को लेकर कोलितमारा की सरपंच रामकली उरमाले की माने तो, यह कैसा विकास हैं, जिसमें आज भी नागरिकों को अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर आवागमन करना पड़ता हैं। किरंगी छर्रा शायद महाराष्ट्र का पहला गांव होगा, जहां 2015 में गांव रोशन हुआ था, अर्थात गांव में बिजली आई थी।