बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ (सोर्स: सोशल मीडिया)
Bombay High Court On MNREGA Fund: महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के तहत धन के वितरण में कथित तौर पर खुली अवैधताओं और पक्षपातपूर्ण व्यवहार के संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया। क्या यह राशि जनप्रतिनिधियों की सिफारिशों पर जारी की जा सकती है जबकि वे अधिनियम के तहत राशि/अनुदान जारी करने की सिफारिश करने के लिए प्राधिकरण नहीं हैं। इस संदर्भ में बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब दायर करने के आदेश दिए।
अखिल भारतीय ग्राम पंचायत एसोसिएशन द्वारा याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सुरभि नायडू गोडबोले, अधिवक्ता प्रकाश नायडू, अधिवक्ता जोसेफ बास्टियन और ध्रुव शर्मा ने पैरवी की।
याचिकाकर्ता एसोसिएशन ने याचिका में शिकायत की है कि राजनीतिक संबंध रखनेवाली कुछ ग्राम पंचायतों के अधिकारियों को प्रभावित करके वरिष्ठता सूची को दरकिनार करते हुए प्राथमिकता मिल रही है और उन्हें नियमों के विरुद्ध जाकर फंड जारी किए जा रहे हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहीं अधिवक्ता सुरभि नायडू ने कोर्ट को बताया कि 2022, 2023 और 2024 से संबंधित स्वीकृत फंड ट्रांसफर ऑर्डर (एफटीओ) के संबंध में लगभग 1500 लाख रुपये का वितरण लंबित है।
इस प्रक्रिया के तहत ग्राम पंचायतों द्वारा कार्य पूरा करने के बाद पंचायत समिति एफटीओ की जांच और उसे जारी करती है जिसे संबंधित जिला परिषदों द्वारा मुहर लगाकर मनरेगा आयुक्त को अनुमोदन और वितरण के लिए भेजा जाता है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि विधायकों और राजनीतिक हस्तियों के साथ प्रभावशाली संबंध रखने वाली कुछ ग्राम पंचायतों ने अपने सिफारिश पत्र प्राप्त करके अधिकारियों को प्रभावित किया।
इसके परिणामस्वरूप वे 2022 से लंबित एफटीओ की तारीख-वार वरिष्ठता सूची को पार करने में सफल रहे और जनवरी-मार्च 2024 में पूरे किए गए कार्यों के लिए भी अपने फंड जारी करवाने में कामयाब रहे जिससे अन्य वैध ग्राम पंचायतों के दावे प्रभावित हुए।
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