आदर्श ग्राम केलोद विकास से कोसों दूर। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नागपुर: जिले में मध्य प्रदेश की सीमा से लगा पहला गांव केलोद, जो आदर्श गांव के नाम से जाना जाता रहा है, अब विकास से कोसों दूर है। किसी समय यह गांव उद्योग और व्यापार का प्रमुख केंद्र था, लेकिन अब उजड़ चुका है। प्रशासन यदि समय रहते इस गांव में विकास कार्यों के साथ ही रोजगार बढ़ाने की दिशा में विशेष प्रयास करे, तो अनेक समस्याओं से यहां की ग्रामीण जनता को निजात मिल सकती है। जनप्रतिनिधियों ने भी इस ओर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
सावनेर से करीब 15 किमी दूरी पर बसा केलोद गांव कभी लकड़ा तथा चूड़ियों के कारोबार के लिए प्रख्यात था। यहां गन्ने से गुड़ बनाने का कार्य भी बड़े पैमाने पर होता था और आसपास के क्षेत्रों के व्यापारी पहुंचते थे। राज्य के पूर्वी छोर का यह पहला गांव उपेक्षित ही रहा। शासकीय यंत्रणा की गंभीरता नहीं होने से मुख्य हाईवे से गांव की ओर जाने वाले रास्ते आज दुर्गम आदिवासी गांवों की कहानी बयां करते हैं।
नाले पर बना ब्रिटिशकालीन मिनी पुल उपेक्षा का शिकार है। बारिश के मौसम में जल स्तर बढ़ने से गांव से हाईवे का संपर्क टूट जाता है। यही मार्ग प्राचीन कपिलेश्वर मंदिर को जोड़ता है, लेकिन आज तक सरकार तथा प्रशासन की उदासीनता का खामियाजा स्थानीय नागरिक भुगत रहे हैं।
मध्य प्रदेश की अन्य खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें…
केलोद परिसर वनाच्छादित है और क्षेत्र में बहुत घना जंगल है, इसलिए हर समय आसपास के गांवों में जंगली जानवरों का डेरा लगा रहता है। बुनियादी सुविधाओं के अभाव के बावजूद कृषि व्यवसाय ही इस क्षेत्र में बड़ा कारोबार है। यह गांव आसपास पहाड़ियों तथा प्राकृतिक संपदाओं से भरा है। यहां शिक्षा की सुविधा है। वहां के अनेक छात्रों को आगे की पढ़ाई के लिए सावनेर, नागपुर पहुंचना पड़ता है। अभी भी आसपास के आदिवासी बहुल गांवों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।
केलोद में पुरातन कपिलेश्वर मंदिर काफी प्रख्यात रहा है। कपिल मुनि द्वारा इस मंदिर के डोह में तपस्या की गई थी और आज भी यह ‘विदर्भ का गंगासागर’ नाम से जाना जाता है। इस परिसर का काफी विकास नहीं हुआ। यह धार्मिक पहचान केलोद को आदर्श गांव के साथ मिली है।
महाराष्ट्र की अन्य खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें…
केलोद क्षेत्र में औद्योगिक विकास नहीं होने से युवाओं को रोजगार का साधन अब बस कृषि कार्य ही है। परिसर में डोलामाइट तथा मैंगनीज का पावडर बनाकर रेलवे की बोगियों से बाहर जाता है। अब भी गांव के लोग विकास की आस में हैं कि कोई तारणहार ‘भगीरथ’ बनकर आए और गांव में विकास की गंगा बहाए।