एकनाथ शिंदे-अजित पवार-देवेंद्र फडणवीस (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Maharashtra Politics: मराठा आरक्षण के मुद्दे को लेकर महायुति सरकार में दरार देखने को मिल रही है। डिप्टी सीएम अजित पवार गुट के कैबिनेट मंत्री व कद्दावर ओबीसी नेता छगन भुजबल ने सरकार के उस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है, जिसमें मराठा समाज के लिए हैदराबाद गजट को मान्यता दी गई है।
उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर मराठा समाज को आरक्षण देने के लिए ओबीसी कोटे पर आंच आई तो वे इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। भुजबल ने बुधवार को कैबिनेट की बैठक का भी बहिष्कार कर दिया। सूत्रों के मुताबिक मराठा आरक्षण के मुद्दे पर महायुति में शामिल दलों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है। मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल के आंदोलन के दौरान भी महायुति में शामिल दलों के बीच समन्वय देखने को नहीं मिला। इस वजह से भी समस्या काफी बढ़ गई।
मराठा आरक्षण पर बढ़ते विवाद को देखते हुए अजित ने बुधवार को कैबिनेट की बैठक खत्म होने के बाद देवगिरी बंगले पर अपनी पार्टी के कोर नेताओं की बैठक बुलाई। बैठक में प्रफुल पटेल, प्रदेश अध्यक्ष सुनील तटकरे व कैबिनेट मंत्री भुजबल भी शामिल हुए। अजित ने हैदराबाद गजट को लेकर सरकार द्वारा जारी जीआर की समीक्षा की। इस पर भी विचार-विमर्श हुआ कि हैदराबाद गजट की वजह से उनकी पार्टी के वोट बैंक पर क्या असर होगा।
ऐसी रिपोर्ट है कि एनसीपी के मुखिया अजित ने अपने मंत्री भुजबल से संयम से काम लेने की अपील की है। उन्हें आश्वस्त किया है कि हैदराबाद गजट से ओबीसी के आरक्षण पर असर नहीं होगा। छोटे पवार ने भुजबल से कहा कि उन्हें कोई आपत्ति है तो वे पार्टी फोरम पर चर्चा करें। सार्वजनिक रूप से बयान देने से महायुति सरकार को लेकर लोगों में अच्छा संदेश नहीं जाता है। सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी महायुति के सभी नेताओं को इस मुद्दे पर संभल कर बोलने की सलाह दी है।
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जरांगे के आंदोलन को लेकर शिंदे की शिवसेना पर सवाल उठ रहे हैं। भाजपा में एक वर्ग का मानना है कि शिंदे ने इस आंदोलन में सक्रिय हस्तक्षेप नहीं किया और सीएम को मुश्किल में डाल दिया। वहीं अजित ने भी सेफ गेम खेलते हुए आंदोलन से दूरी बना ली। अजित की पार्टी का आधार मराठवाड़ा में है। वे जरांगे के खिलाफ बयान देकर अपने मराठा वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहते थे।