महाराष्ट्र का टोल टैक्स (सौजन्य-सोशल मीडिया)
मुंबई: भारत में सड़क विकास के नाम पर केंद्र सरकार ने पिछले पांच सालों में 2.2 लाख करोड़ रुपये तक टोल वसूला है। टोल टैक्स देने में महाराष्ट्र ने भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभाई है। महाराष्ट्र बड़े राज्यों को भी पीछे छोड़कर सबसे ज्यादा टोल टैक्स भरने वालों में पहले नंबर पर आ चुका है।
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार, यह बड़ी रकम 2020-21 से 2024-25 (फरवरी तक) के दौरान नागरिकों से टोल के जरिए वसूली गई। गौरतलब है कि अकेले महाराष्ट्र के लोगों ने 21,105 करोड़ रुपये का टोल चुकाया है, जो देश में चौथे नंबर पर है।
महाराष्ट्र इन चार जिलों में टोल टैक्स देने वालों में सबसे आगे है। इस पांच साल की अवधि में उत्तर प्रदेश (27,014 करोड़ रुपये), राजस्थान (24,209 करोड़ रुपये), गुजरात (21,607 करोड़ रुपये) राज्यों ने भी बड़ी मात्रा में टोल चुकाया है। महाराष्ट्र में 2020-21 में टोल संग्रह 2,590 करोड़ रुपये था, जो हर साल बढ़ता गया। फरवरी 2024-25 तक यह राशि 5,115 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। यानी अकेले महाराष्ट्र से रोजाना औसतन 28 करोड़ रुपये वसूले जाते हैं।
इन आंकड़ों को देखते हुए कई सवाल उठाए जा रहे हैं। क्या वाकई सड़कों के रखरखाव के लिए इस राशि की जरूरत है? क्या महाराष्ट्र की सड़कों की हालत इतनी खराब है कि करोड़ों की राशि उसमें लगाई जा रही है? उन टोल बूथों पर टोल क्यों नहीं रोका जाता, जहां परियोजना लागत वसूल हो चुकी है? सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर अपनी राय जाहिर की है और स्पष्ट किया है कि परियोजना लागत वसूल होने के बाद टोल वसूली बंद होनी चाहिए।
POP मूर्तियों से HC ने हटाया बैन, अब नई पॉलिसी लाएगी फडणवीस सरकार, इन मंडलों को दी खास रियायत
टोल दरों और टोल नंबरों की वजह से आम यात्रियों पर आर्थिक बोझ लगातार बढ़ते जा रहा है। हालांकि, फास्टैग जैसी व्यवस्थाओं ने इस प्रक्रिया में पारदर्शिता ला दी है, लेकिन वसूली की गति और बढ़ती राशि को देखते हुए ‘टोल वसूली’ अब महज सुविधा शुल्क न होकर भारी राजस्व का स्रोत बन गई है।