MBBS और BHMS विवाद (pic credit; social media)
MBBS BHMS controversy: महाराष्ट्र में एलोपैथिक दवाइयां लिखने के अधिकार को लेकर एमबीबीएस और बीएचएमएस डॉक्टरों के बीच विवाद गहराता जा रहा है। रेजिडेंट डॉक्टरों की यूनियन मार्ड ने बीएचएमएस डॉक्टरों को महाराष्ट्र चिकित्सा परिषद (एमएमसी) के रजिस्टर में शामिल करने का कड़ा विरोध किया है और राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि यदि यह निर्णय वापस नहीं लिया गया तो आंदोलन तेज किया जाएगा।
मार्ड का कहना है कि बीएचएमएस डॉक्टरों को एलोपैथिक दवाइयां लिखने की अनुमति देना मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ है। संगठन ने आरोप लगाया है कि बीएचएमएस डॉक्टरों का सीसीएमपी ब्रिज कोर्स बेहद सतही और अधूरा है। इसमें सिर्फ एक साल की ट्रेनिंग दी जाती है, जबकि एमबीबीएस कोर्स पांच साल की पढ़ाई और एक साल की इंटर्नशिप के बाद पूरा होता है। सीसीएमपी में शल्य चिकित्सा, स्त्री रोग, बाल रोग, ईएनटी, हड्डी रोग, त्वचा रोग, रेडियोलॉजी और एनेस्थीसिया जैसे अहम विषय शामिल ही नहीं हैं।
मार्ड ने कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के नियमों के अनुसार आधुनिक चिकित्सा पद्धति का अभ्यास केवल एमबीबीएस और उच्चतर डिग्री धारक डॉक्टर ही कर सकते हैं। बीएचएमएस डॉक्टर पहले से महाराष्ट्र होम्योपैथी परिषद (एमसीएच) के तहत पंजीकृत हैं। उन्हें एमएमसी में शामिल करना न केवल अवैध होगा बल्कि मरीजों की सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा बनेगा।
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मार्ड के मुताबिक राज्य सरकार ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की कमी पूरी करने के नाम पर सीसीएमपी डॉक्टरों को शामिल करना चाहती है, जबकि सच यह है कि हर साल 10,800 से ज्यादा एमबीबीएस छात्र मेडिकल कॉलेजों से निकलते हैं। इनमें से कई डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने के इच्छुक रहते हैं लेकिन पर्याप्त पोस्टिंग नहीं मिलती। यदि सरकार सही तरीके से नियुक्तियां करे तो बीएचएमएस डॉक्टरों की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
डॉक्टरों का कहना है कि बीएचएमएस डॉक्टरों को एलोपैथिक दवाइयां लिखने की अनुमति देना न केवल एमबीबीएस और एमडी-एमएस डिग्री का अवमूल्यन करेगा बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता भी गिराएगा। उन्होंने मांग की है कि राज्य सरकार इस निर्णय को तुरंत रद्द करे और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित एमबीबीएस डॉक्टरों की नियुक्ति करे। इस विवाद ने मेडिकल बिरादरी में हलचल मचा दी है और आने वाले दिनों में यह बड़ा आंदोलन का रूप ले सकता है।