डिजाइन फोटो (सोर्स: सोशल मीडिया)
मुंबई: मुंबई की आबादी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। लोकल ट्रेनों के भीड़ की तस्वीर किसी से नहीं छिपी है। इसी भीड़ को नियंत्रित करने के दृष्टिकोण से मुंबई में मोनो लाई गई थी, जिसके बाद अब मेट्रो का जाल बिछाया जा रहा है। वर्तमान में मुंबई में 3 और नवी मुंबई में एक मेट्रो लाइन चल रही है। मेट्रो में लोगों के लिए कई आरामदायक व्यवस्था दी गई है। लेकिन मुंबई के डब्बे वालों का मानना है कि मुंबई सिर्फ कॉर्पोरेट लोगों की ही नहीं है, बल्कि आम इंसान और डिब्बे वालों की भी है, जो लोगों तक खाना पहुंचाते है।
लोकल ट्रेनों में तो लगेज का डिब्बा दिया हुआ है। इस वजह से डिब्बे वालों को काफी सहूलियत होती है। लेकिन मुंबई की मोनो और मेट्रो में यह व्यवस्था नहीं दी गई है। डिब्बे वालों ने यह मांग की है कि लोकल ट्रेनों की तरह मोनो और मेट्रो में भी लगेज डिब्बा दिया जाए, ताकि डिब्बे वालों को भी इसका फायदा मिल सके।
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मुंबई डब्बावाला एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष तालेकर ने एमएमआरडीए कमिश्नर को लिखे पत्र में कहा कि ”हमारे साहब लोग मोनो और मेट्रो से ऑफिस जा सकते हैं, लेकिन हम उनका टिफ़िन मोनो या मेट्रो से ऑफिस नहीं ले जा सकते। वर्तमान में बीकेसी से आरे तक चलने वाली अंडरग्राउंड मेट्रो 3 का काम पूरा हो चुका है। जल्द ही उद्घाटन किया जाएगा। इसलिए यह मांग की गई है कि या तो डिब्बे वालों को थोड़ा- बहुत सामान ले जाने की अनुमति दी जा या फिर लगेज डिब्बा लगाया जाए।”
इस सेवा की शुरुआत ब्रिटिश राज के दौरान 1890 के दशक में एक ज़रूरत के तौर पर हुई थी। जो लोग अपने घर से दूर काम करने जाते थे इसके उन्हें सुबह ही घर से निकल जाना पड़ता था ऐसे में सुबह खाना नहीं बना तो वह घर का खाना नहीं खा पाते थे। इस समस्या को दूर करने के लिए डब्बावाला सेवा शुरू की गई।
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डब्बावाला एसोशिएशन के कर्मचारी आपके घर से घर बना खाने का टिफिन आपके ऑफिस या काम करने वाली जगह पर पहुंचाते है। डब्बावाले पूरे मुंबई में 3 घंटे में खाना पहुंचाते हैं। इस अवधारणा का उपयोग करते हुए डब्बावालों ने आपके पार्सल को उसी दिन पहुंचाने के लिए नई तकनीकों का उपयोग करते हुए नया ऐप “पेपर्स और पार्सल” शुरू किया है।