बॉम्बे हाईकोर्ट (pic credit; social media)
Child Custody Case: बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि किसी बच्चे की कस्टडी पर उसका पहला और निर्विवाद अधिकार केवल उसके जैविक माता-पिता का ही होता है। अदालत ने कहा कि दादी और पोते के बीच भले ही गहरा भावनात्मक रिश्ता क्यों न हो, लेकिन यह लगाव उन्हें बच्चे की अभिरक्षा का अधिकार नहीं देता।
यह मामला उस समय सामने आया जब एक महिला ने अपने पांच वर्षीय पोते की कस्टडी माता-पिता को देने से इनकार कर दिया। दरअसल, बच्चे के माता-पिता मस्तिष्क पक्षाघात से पीड़ित उसके जुड़वां भाई की देखभाल में व्यस्त थे, जिसके चलते दादी ने उसकी परवरिश की। बाद में संपत्ति विवाद के कारण पिता ने अपने बेटे की कस्टडी मांगी, लेकिन दादी ने इसे देने से मना कर दिया। इसके बाद पिता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की खंडपीठ ने कहा कि बच्चा अपने माता-पिता का है और उन्हें ही उसकी देखभाल का अधिकार है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बच्चे पर माता-पिता के अधिकार केवल तभी सीमित किए जा सकते हैं जब यह साबित हो कि उनके पास बच्चे की परवरिश की क्षमता नहीं है या उनकी कस्टडी से बच्चे का हित प्रभावित होगा।
अदालत ने अपने आदेश में यह भी दर्ज किया कि इस मामले में माता-पिता के बीच कोई वैवाहिक विवाद नहीं है। पिता नगर निगम में कार्यरत हैं और आर्थिक व सामाजिक रूप से सक्षम हैं। ऐसे में दादी का दावा कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है। पीठ ने कहा, “बच्चे को दादी और माता-पिता के विवाद की भेंट नहीं चढ़ाया जा सकता। संपत्ति विवाद जैसे निजी कारणों से बच्चे को उसके जैविक माता-पिता की वैध कस्टडी से वंचित नहीं किया जा सकता।” हाईकोर्ट ने इस फैसले से यह साफ कर दिया कि बच्चा माता-पिता का ही है और उसके भविष्य पर उनका निर्विवाद अधिकार है।