
(प्रतीकात्मक तस्वीर)
Mumbai News In Hindi: मुंबई में बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए बीएमसी ने नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एनडीएमए) को 12,705 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा है, जिसके तहत शहर की पुरानी ड्रेनेज प्रणाली को पुनः विकसित करने और जलवायु अनुकूल क्षमता को बढ़ाने के प्रयास किए जाएंगे।
इसी परियोजना के तहत बीएमसी मुंबई में बड़ी संख्या में बायोस्वेल्स विकसित करने जा रही है। बायोस्वेल एक वनस्पति युक्त उथला क्षेत्र या नहरनुमा संरचना होती है, जो बारिश के पानी को प्राकृतिक रूप से फिल्टर करने के लिए बनाई जाती है। यह मिट्टी, तेल और कचरे जैसे प्रदूषकों को हटाकर पानी को जमीन में रिसने में मदद करती है, जिससे भूजल स्तर बढ़ता है।
मुंबई में हाल के वर्षों में अत्यधिक बारिश की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। बीएमसी के अनुसार, पिछले छह वर्षों में 24 घंटे में होने वाली बहुत अधिक बारिश की औसत मात्रा 132 मिमी से बढ़कर 182 मिमी हो गई है। इससे शहर में बार-बार फ्लैश फ्लड की स्थिति बन रही है।
इसी वर्ष मार्च से अगस्त के बीच कई बार मुंबई ठप हो गई थी। अतिरिक्त आयुक्त (प्रोजेक्ट्स) अभिजीत बांगर ने बताया कि भारी बारिश के दौरान सतही जल को कम करना महत्वपूर्ण है, जिससे निचले इलाकों में जलभराव कम होगा।
ड्रेनेज क्षमता को बेहतर बनाने पर फोकस उन्होंने कहा, “धीमी बारिश में पानी ज्यादा रिसता है, लेकिन तेज बारिश में मुंबई की कठोर सतह के कारण पानी नीचे नहीं जाता और जलभराव होता है। हमारा लक्ष्य शहर की ड्रेनेज क्षमता को बेहतर बनाना है। उन्होंने बताया कि बायोस्वेल एक किफायती समाधान है और इसकी स्थापना से मुंबई की सतह की पानी सोखने की क्षमता बढ़ेगी।
बीएमसी पूरे मुंबई में 800 बायोस्वेल बनाने की योजना बना रही है। शुरुआती चरण में दादर, माटुंगा, सांताक्रुज, अंधेरी और वकोला जैसे परंपरागत जलभराव वाले क्षेत्रों में इन्हें पाकों एवं खुले स्थानों में स्थापित किया जाएगा।
गृह मंत्रालय इस परियोजना को वित्त पोषित करेगा, अगले वर्ष एनडीएमए की टीम मुंबई का दौरा कर योजना का सत्यापन करेगी, जिसके बाद विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की जाएगी। एक अधिकारी ने बताया कि शुरुआती चरण में 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, प्रत्येक बायोस्वेल पर 12-15 लाख रुपये खर्च होंगे।
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मुख्य सड़कों और ट्रैफ़िक डिवाइडरों के किनारे भी चायोस्वेल विकसित किए जाएंगे, जिससे वर्षा जल का बहाव धीमा होकर फिल्टर होकर नालों में जाएगा। प्रत्येक गड्ढे में स्थानीय पौधे, रेत, कंकड़ और की परतें होंगी। बायोस्वेल्स से भूजल भंडारण क्षमता बढ़ेगी, जैव विविधता में सुधार होगा और फुटपाथ व सार्वजनिक स्थान अधिक स्वच्छ रहेंगे, जब ये नेटवर्क पूरी तरह सक्रिय हो जाएंगे, तब शहर को बड़े स्तर पर लाभ दिखाई देंगे। जलभराव घटेगा और बढ़े भूजल स्तर के कारण सतही तापमान भी कम हो सकता है।






