महायुती में फूटा असंतोष (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Kolhapur News: पश्चिम महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर जमीन के टुकड़े पर उलझ गई है। महायुती सरकार के सहयोगी दलों और नेताओं के बीच 6.5 एकड़ सरकारी भूमि पर आरक्षित किए गए प्रकल्प को लेकर जबरदस्त टकराव खड़ा हो गया है। मामला केवल जमीन का नहीं बल्कि राजनीतिक पकड़, सामाजिक दबदबा और आगामी चुनावी समीकरण का भी है। जनसुराज्य शक्ति पार्टी के हातकणंगले विधायक अशोक माने ने दावा किया कि उनकी अथक कोशिशों से कोल्हापुर की महिलाओं के लिए यह सुनहरा अवसर मिला है।
‘सावित्रीबाई फुले महिला सहकारी औद्योगिक वसाहत’ को मंजूरी दिलाने का श्रेय उन्होंने खुद को देते हुए कहा कि इससे हजारों महिलाओं को रोजगार मिलेगा और आत्मनिर्भरता का मार्ग खुलेगा। राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुळे की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिली। मंत्रिमंडल ने भी सहमति जताते हुए बाजार मूल्य करीब 100 करोड़ रुपये वाली इस जमीन को मात्र 20 करोड़ रुपये में संस्था को देने का निर्णय लिया।
लेकिन इस निर्णय ने तत्काल राजनीतिक भूचाल ला दिया। शिवसेना (शिंदे गुट) समर्थक और अखिल भारतीय मराठा महासंघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसंतराव मुळीक ने सीधा सवाल उठाया कि इस संस्था ने अब तक महिलाओं के लिए क्या किया है? कोल्हापुर के मराठा समाज की मांग थी कि इस भूखंड पर ‘मराठा भवन’ बने। मगर सरकार ने एक बाहरी विधायक के दबाव में स्थानीय समाज की उपेक्षा कर दी। मुळीक का कहना है कि विधानसभा चुनाव में उन्होंने शिंदे गुट के राजेश क्षीरसागर को जिताने के लिए अथक परिश्रम किया, लेकिन अब उन्हें ‘बलि का बकरा’ बनाया जा रहा है। इसीलिए वे इस फैसले के खिलाफ उग्र आंदोलन छेड़ने की तैयारी में हैं।
इतना ही नहीं, भाजपा की पृष्ठभूमि से जुड़े वकील बाबा इंदुलकर ने भी अशोक माने को घेरते हुए कहा कि यह निर्णय कोल्हापुर के साथ नाइंसाफी है। उनके अनुसार, इस प्रकार का पक्षपात पूरे जिले के राजनीतिक समीकरण को बिगाड़ देगा।
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इस विवाद ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं। आरोप है कि फडणवीस ने माने को यह भूखंड देकर जनसुराज्य शक्ति पार्टी को साधने का प्रयास किया, वहीं शिंदे गुट के भीतर खुद मतभेद सामने आ रहे हैं। स्थानीय नेताओं का मानना है कि सरकार ने इस फैसले से मराठा समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद आगामी विधानसभा चुनावों में बड़ा मुद्दा बन सकता है। अगर मुळीक और इंदुलकर जैसे नेता खुलेआम बगावत पर उतरते हैं तो महायुती के भीतर दरार गहरी हो सकती है। मराठा समाज का झुकाव किस ओर होगा, यह तय करेगा कि कोल्हापुर और आसपास की सीटों पर किसकी किस्मत चमकेगी। अब सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या यह जमीन वास्तव में महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक बनेगी या फिर राजनीतिक सौदेबाजी और वर्चस्व की लड़ाई का केंद्र? फिलहाल, शासनादेश जारी होने से पहले ही यह प्रकरण महायुती सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है।