
प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स : सोशल मीडिया)
Jalna Crime Law And Order Crisis: जालना जिले में अपराध अब केवल कानून-व्यवस्था की चुनौती नहीं, बल्कि सामाजिक विफलता का आईना बन चुका है। अनैतिक संबंधों, जमीन-जायदाद के विवादों और गैंगवार की आग में बीते 11 महीनों के भीतर 43 लोगों की निर्मम हत्या हो चुकी है।
चौंकाने वाली सच्चाई यह है कि इनमें से अधिकांश घटनाएं छोटे विवादों से शुरू होकर हिंसक अपराध में बदलीं, जिन्हें समय रहते संवाद और काउंसलिंग से रोका जा सकता था।
लेकिन पुलिस थानों में समर्पित काउंसलिंग कक्षों के अभाव ने हालात को और भयावह बना दिया है, जिससे जालना एक बार फिर खून से सनी सुर्खियों में है।
विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि पुलिस ने संपत्ति और पुराने विवादों के मामलों में समय रहते समुचित काउंसलिंग (परामर्श) कर दोनों पक्षों के विरुद्ध आवश्यक कानूनी कार्रवाई की होती, तो अनेक जानें बचाई जा सकती थीं।
हैरानी की बात यह है कि आज भी किसी भी पुलिस थाने में स्थायी काउंसलिंग कक्ष की व्यवस्था नहीं है। तेजी से प्रतिस्पर्धी होते समाज में व्यक्ति की सोच अधिक आत्मकेंद्रित होती जा रही है।
बता दें कि परिवार और समाज से दूरी बढ़ने के साथ धन और संपत्ति अर्जन को ही जीवन का मुख्य लक्ष्य माना जाने लगा है। इसी मानसिकता के चलते छोटे मौखिक विवाद धीरे-धीरे हिंसक झगड़ों और अंततः हत्या तक पहुंच जाते हैं। आंकड़ों के अनुसार, बीते 11 महीनों में पैसों के लेन-देन और भूमि विवादों से जुड़े मामलों में 17 हत्याएं हुई।
पारिवारिक विवादों में 4 हत्याएं, जबकि 9 हत्याएं मामूली कारणों से दर्ज की गई, चिंताजनक तथ्य यह है कि गाली-गलौज जैसे कारणों पर कदीम और घनसावंगी थाना क्षेत्रों में दो हत्याएं हुई। कुल 43 में से 29 हत्याएं ऐसी थीं, जिन्हें संवाद और आपसी समझौते से रोका जा सकता था।
पुलिस के पास छोटी शिकायतें लेकर आने वाले मामलों में विवादों को गंभीर अपराध में बदलने से रोकने के लिए ठोस और निवारक प्रयास नहीं किए गए। परिणामस्वरूप, छोटे झगड़े बड़े अपराधों में परिवर्तित होते चले गए और जालना एक बार फिर रक्तरंजित घटनाओं का साक्षी बना।
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स्पष्ट है कि अपराध नियंत्रण के लिए केवल दंडात्मक कार्रवाई पर्याप्त नहीं है। समय पर संवाद, प्रभावी काउंसलिंग और निवारक कदम अनिवार्य है, ताकि छोटे विवाद बड़े हादसों में तब्दील होने से पहले ही रोके जा सके।






