मुआवजे की राह देख रहे किसान (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Gondia News: जंगली जानवरों में सुअर, हिरण, नीलगाय, जंगली भैसों के द्वारा धान, चना, गेहूं, अलसी, लखोरी, गन्ना, मक्का, तुअर आदि किसानों द्वारा लगाई गई फसलों का पूरी तरह नुकसान इस कदर कर देते हैं कि किसान के हाथ में नुकसान किए जगह का एक दाना भी नहीं आता। किसान रात में खेत में फसल की रखवाली करने जाते हैं तब इन पर भी जानलेवा हमला कर कईयों को घायल कर दिए हैं।
यह सभी जानवर वनविभाग की मालकियत में होने की वजह इनकी देखभाल व इन्हें अपनी सुरक्षा में जंगलों में फेंसिंग (बाड़) बनाकर रखना वनविभाग की जिम्मेदारी है। इस विभाग की जानवरों को अपने कब्जे में रखने की किसी भी प्रकार की मानसिकता नहीं रहने की वजह जानवर जंगल छोड़कर गांवों में रिहायसी क्षेत्र व खासकर खेतों में आने लगे व महत्वपूर्ण गंभीर बात यह है कि यह सभी रात्रि में आकर फसलों को तहस नहस कर देते हैं। सभी किसान रात्रि में इन जानवरों का मुकाबला नहीं कर सकते। यह सभी जानवर झुंड के साथ सामूहिक रूप से आते हैं।
फसल का नुकसान होने पर किसान को लिखित निवेदन के साथ नुकसानग्रस्त फसल का छायाचित्र, सातबारा, आठ अ, आधार कार्ड की प्रतिओं के साथ वनविभाग में देना पड़ता है। उसके पश्चात वनविभाग के वनरक्षक मौके का निरीक्षण कर अपने मोबाइल में छायाचित्र लेकर दो गवाहों की उपस्थिति में पटवारी व कृषि पर्यवेक्षक के साथ सामूहिक संमति के साथ नुकसान का आकलन कर प्रत्येक कागजों की दो प्रतियों के साथ वरिष्ठों की ओर भेजते हैं।
धान उत्पादक किसान अपने खेत के आसपास के मेढ़ पर तुअर की फसल लेते थे। जिससे किसानों को मुफ्त में बिना खाद, पानी व दवा के यह फसल होती थी। तब बंदरों का आतंक नहीं के बराबर था।
देहातों में व शहरों में भी मकानों पर मिट्टी के कवेलू बिछाए रहते थे व किसानों की महिलाएं भी तुअर की रखवाली दिन में कर आए हुए बंदरों को श्वानों के सहारे भगा लेती थी। इनके जंगलों में रहने की यह एक वजह थी कि वहां पर फलों के पेड़ पौधे थे। उन्हें खाकर रहते थे। लेकिन अब जंगलों में फलों के अन्य वनस्पति अब नष्ट होने लगी। इस वजह बंदर अब रिहायसी परिसर में आने लगे हैं। यह बंदर भी निडर होकर पुरुषों व श्वानों को भी डरते नहीं। इन पर भी अपना रुतबा दिखाते हैं। महिलाओं की तो अब खैर ही नहीं। ऐसे उत्पाती जानवरों की वजह से किसानों ने तुअर लगाना बंद कर दिया।
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किसानों का नुकसान जंगली जानवरों के द्वारा न किया जाए तो इन्हें किसी मुआवजे की जरुरत ही नहीं है व मांगते भी नहीं है। लेकिन सरकार के जानवर नुकसान करेंगे तो नुकसान मुआवजा मांगना उनका अधिकार है। सरकार अपने जानवरों को अपने बस में रखती तो यह नौबत नहीं आती। मुआवजे की प्रक्रिया के लिए केवल आश्वासन ही दिया जा रहा है। कई तरह की अनेक घोषणाएं की जा रही है। किसानों की मांग है कि अन्य खर्च बाजू में रख हमारा नुकसान का मुआवजा अति शीघ्र दिया जाए।