
कर्नाटका पावर, फोटो- सोशल मीडिया
Karnataka Power Corporation Chandrapur protest: चंद्रपुर में कर्नाटका पावर के विस्तार को लेकर आयोजित जनसुनवाई में भारी बवाल हुआ। प्रदूषण, ब्लास्टिंग और पुनर्वास के मुद्दों पर ग्रामीणों और स्थानीय नेताओं ने कंपनी अधिकारियों को जमकर लताड़ा, जिसके बाद प्रशासन को जनसुनवाई रद्द करनी पड़ी।
महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय में मंगलवार, 30 दिसंबर को आयोजित जनसुनवाई रणक्षेत्र में तब्दील हो गई। कर्नाटका पावर कंपनी (KPCL) के ओपन कास्ट खदान प्रकल्प के विस्तार को लेकर बुलाई गई इस बैठक में सोमनाला, बोंथाला, बरांज मोकासा और केसुरली सहित कई गांवों के प्रकल्पग्रस्त भारी संख्या में पहुंचे थे। ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों के तीखे विरोध और तनावपूर्ण वातावरण के कारण अंततः प्रशासन को यह जनसुनवाई रद्द करने का निर्णय लेना पड़ा।
यह जनसुनवाई कंपनी की उत्खनन क्षमता को 3.50 MTPA से बढ़ाकर 5.00 MTPA करने के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए आयोजित की गई थी। 1457.20 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली इस लीज के विस्तार का ग्रामीण शुरुआत से ही विरोध कर रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी केवल अपने मुनाफे पर ध्यान दे रही है, जबकि क्षेत्र में रहने वाले लोग जानलेवा प्रदूषण और असुरक्षित जीवन जीने को मजबूर हैं।
जनसुनवाई के दौरान कांग्रेस नेता सुनील नामोजवार, शिवसेना (शिंदे गुट) के आक्रामक नेता मुकेश जीवतोड़े और भाजपा के जनप्रतिनिधि आकाश वानखेड़े ने कंपनी के अधिकारियों को आड़े हाथों लिया। भाजपा नेता आकाश वानखेड़े ने कंपनी के अधिकारी जिभकाटे और आर.पी. सिंह के खिलाफ मामला दर्ज करने तक की मांग कर डाली। उन्होंने आरोप लगाया कि स्थानीय दलालों के माध्यम से लाखों रुपयों की हेराफेरी हो रही है और आयुध कारखाने के पास सुरक्षा दीवार जैसे जरूरी काम भी अधूरे पड़े हैं।
कांग्रेस नेता सुनील नामोजवार ने प्रकल्प प्रभावित परिवारों का पक्ष रखते हुए स्पष्ट किया कि जब तक गांवों का पूर्ण पुनर्वास नहीं हो जाता, तब तक विस्तार की किसी भी प्रक्रिया को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ग्रामीणों की मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो कांग्रेस बड़े पैमाने पर आंदोलन करेगी। वहीं, मुकेश जीवतोड़े ने मांग की कि भारी यातायात, ब्लास्टिंग से होने वाले नुकसान और लंबित मुआवजे पर जब तक कंपनी लिखित आश्वासन नहीं देती, तब तक काम शुरू नहीं होना चाहिए।
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नेताओं ने आरोप लगाया कि कंपनी प्रशासन जिलाधिकारी द्वारा 20 नवंबर को दिए गए निर्देशों का खुला उल्लंघन कर रहा है। सुरक्षा मानकों की अनदेखी और प्रभावितों की भूमि का उचित मुआवजा न देना कंपनी की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। स्थानीय निवासियों के बढ़ते गुस्से और किसी ठोस समाधान के अभाव को देखते हुए अधिकारियों ने जनसुनवाई को फिलहाल स्थगित करने में ही भलाई समझी। इस घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया है कि बिना जनता के विश्वास और पुनर्वास के कंपनी के लिए विस्तार की राह आसान नहीं होगी।






