दादर कबूतर खाना (pic credit; social media)
मुंबई: शांति के प्रतीक कहे जाने वाले कबूतरों को अब शहर से बेदखल किया जायेगा। सांस की बीमारियों के बढ़ते हुए मामलों को देखते हुए बीएमसी अनाधिकृत तौर पर चल रहे कबूतर खाने को बंद करेगी। विधान परिषद में मुंबई में कबूतरखानों से फैल रही बिमारियों के मुद्दे पर सरकार के निर्देश के बाद बीएमसी ने कई कबूतरखानों के अतिक्रमण पर कार्यवाई करते हुए अनाधिकृत तौर पर चल रहे कबूतरखानों को तोड़ दिया।
कबूतरखानों से आसपास रहने वाले निवासियों में सांस संबंधी बीमारी बढ़ रही है। कबूतरों की बीट और पंखों के कारण अस्थमा और फेफड़ों की बीमारियों के साथ साथ त्वचा रोगों जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कबूतरों के नजदीक रहने वाले लोगों में हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस जैसी बीमारी भी हो रही है।
मुंबई में करीब 51 कबूतरखानों को बीएमसी ने आधिकारिक तौर पर मंजूरी दी है, लेकिन 500 से अधिक स्थानों पर अनाधिकृत तौर पर कबूतरखाना चलाया जा रहा है। बीएमसी ने अनाधिकृत तौर पर कबूतरों को दाना खिलाने वाले जगहों को चिन्हित कर उन्हें तोड़ रही है। बीएमसी ने दादर कबूतर खाने में अस्थायी शेड और बाड़ को हटा दिया और कबूतरों के चारे की करीब 25 बोरियां जब्त की। कबूतरखाना प्रबंधन की ओर से परिसर में कबूतरों का चारा रखने के लिए शेड लगाया था।
15 लाख कबूतरों के दाना का खर्चा
बता दें इस कबूतरखाना में प्रतिदिन एक लाख से अधिक कबूतर दाना चुगने के लिए आते हैं। इन कबूतरों को प्रतिदिन 50 हजार रुपये का दाना खिलाया जाता है। भुना चना, बाजरी, ज्वार आदि अनाज की करीब 60 बोरी रोज की खपत है। इस कबूतरखाना का वार्षिक बजट 1 करोड़ 80 लाख रूपये है। करीब 15 लाख रुपये महीने इन कबूतरों के दाना, चिकित्सा व रखरखाव पर खर्च किया जाता है।
मुंबई में कबूतरों को दाना देना पुरानी परंपरा
मुंबई में दादर ( पश्चिम ) का कबूतरखाना एक लैंडमार्क के तौर पर जाना जाता है। जैन धर्म के 16वें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ का देरासर यहां पर करीब 110 वर्ष पुराना है। देरासर निर्माण के समय से ही कबूतरखाना अस्तित्व में है। मान्यता है कि भगवान शांतिनाथ का देरासर जहां भी होगा वहां कबूतरों को दाना चुगाने की व्यवस्था जरूर होगी। देरासर में आने वाले श्रद्धालु पहले यहां कबूतरों को खुले में दाना चुगाते थे।
1954 में तत्कालीन बॉम्बे की पहली महिला मेयर सुलोचना एम. मोदी ने कबूतरों को दाना चुगाने के लिए यहां की जमीन कबूतरखाना ट्रस्ट को लीज पर दी थी। 1954 में पूरे गोल सर्कल को कवर करते हुए रेलिंग लगाई गई और बीच में एक फव्वारा लगाया गया। कबूतरखाना की रेलिंग और फव्वारा को प्राचीन वैभव संरक्षण के तहत हेरिटेज घोषित किया गया है।
दादर कबूतर खाना मुंबई विरासत
सांस्कृतिक धरोहर में शामिल दादर कबूतर खाना को मुंबई के विरासत के रूप में भी देखा जाता है। सीएसटी प्रधान डाकघर के सामने का कबूतर खाना भी काफी पुराना है, जहां पक्षी प्रेमी कबूतरों को दाना खिलाने के लिए पहुंचते हैं। भुलेश्वर में श्रीराम मंदिर के पास करीब 100 वर्ष पुराना कबूतरखाना है। भुलेश्वर के इस क्षेत्र में करीब आधे किमी के दायरे में बड़ी संख्या में मंदिर है। श्रद्धालु मंदिर जाने के बाद यहां के कबूतरखाना में कबूतरों को दाना खिलाते हैं।
मुंबई के दिलीप माहेश्वरी का कहना है कि भूलेश्वर के कबूतरखाना की गंदगी से इस क्षेत्र में बीमारियां बढ़ रही है। कबूतरखाने के पास अक्सर कबूतर,चूहे, बिल्ली मरे पड़े हुए देखे जा सकते हैं। यह दक्षिण मुंबई का सबसे बड़ा व्यापारिक स्थान है। बावजूद बीएमसी इस कबूतरखाने की सफाई नहीं कर रही है।
राहुल गुप्ता का कहना है कि कबूतरखाना को बंद करना एक सामाजिक मुद्दा है, इसलिए उसे सामाजिक स्तर पर ही सुलझाया जाना चाहिए। कबूतरों के कारण वाहनों की दुर्घटना बढ़ी है। गंदगी के कारण स्थानीय निवासियों को सांस लेने में परेशानी हो रही है।
मोहनलाल जैन का कहना है कि मूक पशु पक्षियों को अन्न खिलाना हमारी संस्कृति का हिस्सा है। आज कबूतरों को दाना नहीं खिलाना है तो कल कहेंगे गाय को रोटी मत खिलाओ। दरअसल, एक साजिश के तहत बिल्डरों के इशारे पर कबूतरखाना को बंद करने की साजिश चल रही है।