लक्ष्मी पूजा: अमृततूल्य खीर की चाहत (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Bhandara News: हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस पूर्णिमा का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है।इस दिन स्नान, दान करने के साथ-साथ मां लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर आती है। इसलिए इस दिन पूजा अर्चना करने के साथ जागरण किया जाता है। इसके अलावा रात को खुले आसमान के नीचे खीर रखी जाती है।
आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि का आरंभ 6 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 24 मिनट से आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि का समापन 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 35 मिनट तक शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय शाम 05 बजकर 31 मिनट पर होगा।इस साल शरद पूर्णिमा के दिन भद्रा के साथ पंचक भी लग रहा है। 6 अक्टूबर को दोपहर में 12 बजकर 23 मिनट आरंभ हो रहा है, जो रात में 10 बजकर 53 मिनट पर समाप्त होगी।
इसके साथ ही पंचक भी रहेगा, क्योंकि पंचक 3 अक्टूबर से आरंभ होगा जो 8 अक्टूबर को समाप्त होगा। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है। चंद्रमा का संबंध दूध से माना जाता है, इसलिए इस दिन दूध से बनी वस्तुओं को चंद्रमा की रोशनी में रखने से वे अमृत तुल्य हो जाते हैं। विशेष रूप से खीर को इस दिन चंद्रमा की रोशनी में रखने से उसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो जाता है। साथ ही, मां लक्ष्मी को भी दूध की खीर बहुत प्रिय होती है, इसलिए इस दिन मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाया जाता है।
नारद पुराण के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी उल्लू पर सवार होकर पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। इसलिए इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। कहा जाता है कि इस दिन लक्ष्मी जी अपने श्रद्धालुओं को धन, वैभव, यश और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। इसलिए घर के मुख्य द्वार पर दीप जलाकर देवी का स्वागत करना चाहिए।
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शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में राधा और गोपियों संग अद्भुत महारास का आयोजन किया था। कहा जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने गोपियों संग नृत्य करने के लिए अनेक रूप प्रकट किए थे। यह दिव्य रासलीला केवल नृत्य नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और आनंद का अद्वितीय प्रतीक भी मानी जाती है।
शरद पूर्णिमा की रात ही समुद्र मंथन के समय माता लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा का दिन लक्ष्मी पूजन के लिए बेहद खास माना जाता है। कई जगहों पर इस दिन कुंवारी कन्याएं सूर्य और चंद्र देव की पूजा करती हैं। और उनसे आशीर्वाद लेती हैं।