
पटोले साबित करेंगे कि वही हैं ‘नाना’? (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Bhandara Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में मजबूत पहचान रखने वाले कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और विधायक नाना पटोले के गृह क्षेत्र साकोली-सेंदुरवाफा में नगरपरिषद चुनाव ने राजनीतिक माहौल गर्म कर दिया है। विधानसभा चुनाव के बाद अब यह चुनाव पटोले की राजनीतिक समझ, रणनीति और प्रभाव की वास्तविक परीक्षा माना जा रहा है। पिछली बार भाजपा के कब्जे में गई इस सीट पर एक बार फिर कांग्रेस का झंडा फहराने की चुनौती उनके सामने है। चुनावी समीकरणों के कारण उन्हें यह साबित करना होगा कि वे वास्तव में “सबके नाना” हैं।
2016 में नगरपरिषद की स्थापना के बाद हुए पहले चुनाव में भाजपा ने बहुमत हासिल कर सत्ता पर कब्जा किया था। धनवंता राऊत नगराध्यक्ष चुनी गई थीं। उस चुनाव में भाजपा के 10, राष्ट्रवादी के 1, चार निर्दलीय और कांग्रेस के केवल 1 उम्मीदवार विजयी हुए थे। इसलिए इस बार परिस्थितियों को अपने पक्ष में बदलने के लिए नाना पटोले और कांग्रेस को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
नगरपरिषद क्षेत्र में कुल 10 प्रभाग और 20 नगरसेवक पद हैं। शहर में 22,681 मतदाता पंजीकृत हैं, जिनमें 11,641 महिलाएं और 11,040 पुरुष शामिल हैं। नगराध्यक्ष पद के लिए 9 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिसके कारण जातीय और स्थानीय समीकरण निर्णायक भूमिका निभाने की संभावना है। कोहली समाज के प्रभाव को देखते हुए तीनों प्रमुख दलों कांग्रेस, भाजपा और राष्ट्रवादी (अजित पवार गुट) ने इस समुदाय से ही अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
इस स्थिति के कारण जातीय मत विभाजन तेज होने की संभावना है। भाजपा की देवश्री कापगते और कांग्रेस की सुनिता कापगते, दोनों ही प्रभावशाली परिवारों से होने के कारण मुकाबला और अधिक प्रतिष्ठापूर्ण बन गया है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व विधायक हेमकृष्ण कापगते, पूर्व विधायक बाला काशिवार और जिला परिषद सदस्य अविनाश ब्राह्मणकर जोरदार प्रचार कर रहे हैं। विधान परिषद सदस्य परिणय फुके की सक्रियता भी भाजपा के पक्ष में माहौल मजबूत कर रही है।
वहीं कांग्रेस में अंदरूनी विरोध बढ़ता जा रहा है। हाल ही में 13 पदाधिकारियों के सामूहिक इस्तीफे से संगठन कमजोर पड़ा है। आने वाले दिनों में और असंतोष बढ़ने की संभावनाएँ जताई जा रही हैं।
उद्योग, रोजगार, स्वास्थ्य सुविधाएँ, सड़कें और स्वच्छता इन सभी क्षेत्रों में अपेक्षित विकास न होने से नागरिकों में नाराजगी है। यह नाराजगी चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकती है, जो कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
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साकोली-सेंदुरवाफा नगरपरिषद का यह चुनाव केवल स्थानीय निकाय का चुनाव नहीं है, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों के राजनीतिक समीकरणों को भी दिशा देने वाला माना जा रहा है।
जातीय राजनीति, दलों के भीतर खींचतान, प्रभावशाली परिवारों का दबदबा और विकास कार्यों की कमी इन सभी पहलुओं के कारण यह चुनाव अत्यंत रोमांचक और निर्णायक बन गया है। अब सबकी नजरें इस पर टिकी हैं कि परिणाम किस ओर झुकते हैं और आगे की राजनीतिक दिशा किसके हाथ में जाती है।
पंचायत समिति पर कांग्रेस का नियंत्रण होने के बावजूद, नगरपरिषद चुनाव में पार्टी के अंदरूनी मतभेद और भाजपा का मजबूत संगठन पटोले के लिए कठिन परिस्थिति पैदा कर रहा है।
कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना, चुनाव प्रबंधन को सुदृढ़ करना और स्थानीय नाराजगी को कम करना इन सभी मोर्चों पर नाना पटोले की असली परीक्षा होने वाली है। परिणाम यह तय करेंगे कि वे अपने गृह क्षेत्र में राजनीतिक प्रभाव और पकड़ को कितना बनाए रख पाते हैं।






