प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: सोशल मीडिया)
Nagzira Forest Labour Exploitation: भंडारा जिले नागझिरा अभयारण्य में वन मजदूरों का शोषण किए जाने का मामला सामने आया है। जंगल में फायर लाइन का काम करने वाले मजदूरों को मात्र 170 रुपये मजदूरी दी जा रही हैं। वहीं, जंगल में काम करने वाले 5 मजदूरों को एक साल बीत जाने के बाद भी मजदूरी नहीं मिली है।
इससे मजदूरों में भारी आक्रोश व्याप्त है। जब मजदूरों ने काम के वाउचर मांगे तो नागझिरा के कर्मचारी और अधिकारी चुप्पी साधे बैठे नजर आए। इससे इस पूरे मामले में गड़बड़ी की आशंका जताई जा रही है।
आरोप है कि आदिवासी मजदूरों की मेहनत की कमाई पर वनकर्मियों द्वारा डाका डाला जा रहा है। मौसमी मजदूरों को मात्र तीन महीने के लिए रखा जाता है और इस अवधि में उन्हें 24 घंटे ड्यूटी करनी पड़ती है। सवाल यह उठता है कि इन मजदूरों का शोषण आखिर कब रुकेगा? नई नागझिरा के उमरझरी 2 में 24 दिसंबर 2024 से 6 जनवरी 2025 तक फायर लाइन का काम वनरक्षक बोरकर के कार्यकाल में किया गया।
इसके लिए आतेगांव के मजदूरों ने 13 दिन काम किया। इनमें अंताराम मानकर, सुरेश गणवीर, मनसुख मानकर, सूर्यभान प्रत्येकी, वच्छला मानकर, मंगला मानकर, कविता गणवीर, रत्ना कलपते, धर्मशीला कलपते, कावेरी सुधाकर प्रत्येकी, शालू वरकडे और राजकन्या कलपते शामिल हैं। इन मजदूरों ने जंगल में जाकर अपनी जान जोखिम में डालकर काम किया ताकि उन्हें अच्छी मजदूरी मिल सके।
13 दिनों के काम का 2218 रुपये भुगतान पांच महीने बाद मजदूरों के खातों में किया गया। सत्यशिला जयदास कलपते के खाते में 2219 रुपये तेरह दिन की मजदूरी आरएफओ महाकैंप कार्यालय से जमा की गई। लेकिन राजकन्या राजकुमार कलपते के खाते में अब तक मजदूरी की रकम नहीं पहुंची है।
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इस मामले में जिन लोगों ने काम ही नहीं किया, उनके नाम पर पैसे जमा किए जाने की चर्चा है। जब वाउचर दिखाने की मांग की गई तो नागझिरा के वनपरिक्षेत्र अधिकारी सागर बारसागडे ने देने से इंकार कर दिया। इससे यह संदेह और गहरा गया है कि “काम करने वाले को बीस और खाने वाले को तीस” का खेल चल रहा है।
जानकारी के मुताबिक उमरझरी 1 में वनरक्षक राठौड़ के कार्यकाल में गत वर्ष सितंबर माह में देवतुलसी निकालने का काम किया गया था। इस काम में 20-25 मजदूर लगे थे। पुष्पा ज्ञानेश्वर पंधरे ने तीन दिन काम किया, जिसके लिए उन्हें टीआरपी लेबर डे खाते से 23 दिसंबर 2024 को 489 रुपये मिले, यानी 163 रुपये रोजाना। यह काम सितंबर 2024 में किया गया था।
इसी तरह अन्य मजदूर गीता परसराम सयाम, सोविंदराव प्रत्येकी, रिना राजकुमार प्रत्येकी, रशिका गोविंदराव प्रत्येकी और मीनाक्षी भूपेश सलामे को अब तक मजदूरी नहीं मिली है। वहीं, जिन्होंने काम नहीं किया, उनके खातों में पैसे भेजे गए। इससे स्पष्ट होता है कि नागझिरा व्याघ्र परियोजना में स्वयं वन कर्मचारी ही वन मजदूरों का शोषण कर रहे हैं।