भंडारा में स्थापित गणेश प्रतिमा (फोटो नवभारत)
Bhandara Hadapakya Ganapati News: गणेशोत्सव की धूम-धाम समाप्त होने के बाद भंडारा जिले में एक और अनोखी परंपरा शुरू हो जाती है, जिसे हडपक्या गणपति या मसकर्या गणपति के नाम से जाना जाता है। इस उत्सव के दौरान धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक श्रृंखला आयोजित की जाती है, जो न केवल लोगों में धार्मिक आस्था को मजबूत करती है बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक जीवन को भी नई ऊर्जा प्रदान करती है। विदर्भ के कई गांवों और तहसीलों में यह परंपरा आज भी जीवंत है, जिसमें मोहाडी तहसील के करडी और निलज बु. गांव प्रमुख हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, इस उत्सव की शुरुआत नागपुर के राजा खंडोजी महाराज भोसले के समय से हुई थी। जब वे बंगाल विजय अभियान से वापस लौटे, तब तक घरेलू गणपति का विसर्जन हो चुका था। अपनी विजय की खुशी मनाने के लिए उन्होंने पितृपक्ष में विशेष रूप से गणपति की स्थापना की। तभी से यह उत्सव सार्वजनिक रूप से मनाया जाने लगा।
विदर्भ में पितृपक्ष को ‘हडपक’ कहा जाता है, इसीलिए इस समय स्थापित गणपति को स्थानीय बोली में ‘हडपक्या गणपति’ या ‘मसकर्या गणपति’ कहते हैं। इस अवसर पर हास्य और मनोरंजन से भरपूर सांस्कृतिक कार्यक्रम, जैसे लावणी, नाटक, और नकली खेल आयोजित किए जाते हैं।
मोहाडी तहसील का निलज बु. गांव इस परंपरा को 41 वर्षों से अधिक समय से जीवित रखे हुए है। लगभग तीन हजार की आबादी वाले इस गांव में, युवकों ने 1983 से इस उत्सव की शुरुआत की थी। इससे पहले, पास ही स्थित देव्हाडा बु. के शक्कर कारखाने के कर्मचारियों ने गणेशोत्सव मनाना शुरू किया था, और गांव के लोगों ने उसी परंपरा को आगे बढ़ाया है।
हडपक्या गणपति उत्सव के दौरान गांव में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें रंगोली प्रतियोगिता, दांडपट्टा, संगीत नाटक, तमाशा, कव्वाली, भजन और कीर्तन शामिल हैं।
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गणपति को कला का देवता माना जाता है, और यह उत्सव ग्रामीण युवाओं और बच्चों को अपनी प्रतिभा दिखाने का एक बेहतरीन मंच प्रदान करता है। इन कार्यक्रमों से न केवल मनोरंजन होता है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने का मौका भी मिलता है।
यह परंपरा सिर्फ गांवों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि भंडारा शहर के महाल वार्ड स्थित माकडे मोहल्ले में भी पिछले 30 वर्षों से सार्वजनिक हडपक गणेशोत्सव मंडल द्वारा हडपक्या गणपति की स्थापना की जा रही है। यहां प्रतिदिन भजन, पूजन, आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इस उत्सव का समापन एक भव्य रैली और महाप्रसाद के साथ होता है।
मंडल के अध्यक्ष साहिल देवले और उपाध्यक्ष खुशाल कावले समेत सभी पदाधिकारी इस आयोजन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। यह परंपरा धार्मिक आस्था, सामाजिक एकजुटता और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, जो आधुनिक समय में भी लोगों को अपनी जड़ों से जोड़े रखती है।