प्रवेश (फाइल फोटो)
Bhandara News: भंडारा जिले में डीएड (डिप्लोमा इन एजुकेशन) की प्रवेश प्रक्रिया अब लगभग पूरी हो चुकी है। चार चरणों में पूरी की गई इस प्रक्रिया के बाद जिले के आठ कॉलेजों में से कुल 487 सीटों में से 450 सीटें भर चुकी हैं, जबकि केवल 37 सीटें रिक्त रह गई हैं। इस स्थिति को देखते हुए शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों ने इसे संतोषजनक परिणाम बताया है।
पिछले कुछ वर्षों से शिक्षकों की भर्ती नहीं होने, शिक्षा क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमट जाने से डीएड जैसे परंपरागत कोर्स की ओर छात्रों का रुझान धीरे-धीरे घट रहा था। आधुनिक समय में बीएड, एमएड जैसे उच्च स्तरीय कोर्स के साथ-साथ अन्य व्यावसायिक शिक्षा विकल्पों के चलते डीएड कोर्स को अपेक्षित प्रतिसाद नहीं मिल रहा था। यही कारण था कि बीते वर्षों में प्रवेश प्रक्रिया पूरी होने के बाद बड़ी संख्या में सीटें रिक्त रह जाती थीं।
किंतु इस वर्ष तस्वीर कुछ हद तक बदली दिखाई दी। प्रवेश प्रक्रिया चार चरणों में चलाई गई। यदि पर्याप्त छात्र दाखिला नहीं लेते तो पांचवां राउंड भी चलाने की तैयारी थी, किंतु स्थिति इतनी बेहतर रही कि चार राउंड में ही अधिकांश सीटें भर गईं। यह सकारात्मक संकेत है कि अब भी अनेक छात्र शिक्षक बनने के उद्देश्य से इस कोर्स को प्राथमिकता दे रहे हैं। डीएड कोर्स का महत्व ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में काफी अधिक है।
प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षक बनने के लिए डीएड कोर्स को आधारभूत योग्यता माना जाता है। यही कारण है कि शिक्षा क्षेत्र में करियर बनाने वाले विद्यार्थियों के लिए यह कोर्स हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा है।हालांकि बदलते दौर में रोजगार की चुनौतियों और प्रतियोगी परीक्षाओं की कठिनाई के कारण युवाओं का रुझान कुछ हद तक कम हुआ है।
भंडारा जिले के आठ कॉलेजों में इस वर्ष कुल 487 सीटें उपलब्ध थीं। प्रवेश प्रक्रिया के दौरान कड़ी पारदर्शिता बरती गई। विभिन्न ऑनलाइन पोर्टल और मेरिट लिस्ट के आधार पर विद्यार्थियों को प्रवेश दिया गया।विशेष बात यह रही कि पहले तीन राउंड में ही अधिकांश सीटें भर गई थीं, चौथे राउंड में केवल कुछ ही सीटें शेष रहीं। अंततः कुल 450 सीटों पर छात्रों ने प्रवेश ले लिया और 37 सीटें खाली रह गईं।
विशेषज्ञों का मानना है कि डीएड कोर्स की मांग में आंशिक बढ़ोतरी इसलिए हुई है क्योंकि अब शिक्षा क्षेत्र में सरकारी और गैर-सरकारी दोनों स्तरों पर प्रशिक्षित शिक्षकों की जरूरत महसूस की जा रही है। साथ ही, नई शिक्षा नीति के चलते भी प्राथमिक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता पर जोर बढ़ा है, जिससे छात्रों को यह कोर्स उपयोगी प्रतीत हो रहा है।
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रिक्त रह गई 37 सीटें यह संकेत भी देती हैं कि अभी भी डीएड को लेकर पूरी तरह सकारात्मक माहौल नहीं बना है। यदि भविष्य में कोर्स की संरचना और रोजगार के अवसरों को और मजबूत किया गया तो यह स्थिति और बेहतर हो सकती है। समग्र रूप से देखा जाए तो इस वर्ष भंडारा जिले में डीएड प्रवेश प्रक्रिया का परिणाम संतोषजनक रहा है।
जहां पिछले वर्षों में आधी से अधिक सीटें रिक्त रह जाती थीं, वहीं इस बार केवल 37 सीटें खाली रह जाना शिक्षा जगत के लिए आशा की किरण है। यह न केवल विद्यार्थियों की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव को दर्शाता है, बल्कि शिक्षा क्षेत्र के महत्व को भी उजागर करता है।
इस बार पांचवां राउंड चलाने की जरूरत नहीं है। लगभग आवश्यक सीटें भर गई है। यह डीएड को लेकर सकारात्मक संकेत है।
– राजेश रूद्रकार, प्राचार्य, डायट भंडारा।