मेहनतकश किसान पर कुदरत का कहर। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
भंडारा: भंडारा जिले के लाखनी तहसील के झरप गांव में शुक्रवार दोपहर एक असहनीय त्रासदी ने दस्तक दी। किसान भूषण रघुनाथ कोरे के जीवन में अचानक ऐसा तूफान आया, जिसने न केवल उनका आर्थिक आधार छीन लिया, बल्कि उनके संघर्षों से भरी जिंदगी में और भी अंधकार घोल दिया। शुक्रवार (13 जून) दोपहर को आसमान में काले बादलों के साथ गरज-चमक शुरू हुई।
झरप गांव में हल्की बारिश की बूँदें गिरनी शुरू ही हुई थीं कि अचानक एक तेज आवाज के साथ आकाशीय बिजली कोरे के घर के सामने गिरी जहाँ पेड़ से बंधे उनके दो बैल खड़े थे। कुछ ही पलों में दोनों बैल वहीं ढेर हो गए। कोरे की आंखों के सामने उनका वर्षों पुराना साथ और मेहनत का सबसे अहम साधन खत्म हो गया।
भूषण कोरे ने इन बैलों को बच्चों की तरह पाला था। खेती उनके लिए केवल आजीविका का साधन नहीं थी, बल्कि वह जीवन का आधार थी। बैल ही उनके खेत जोतते थे, उसी से अनाज उगता था और घर का चूल्हा जलता था। अब, खरीफ सीजन की बुवाई शुरू होने से पहले ही उनका सबसे बड़ा संबल खत्म हो गया। आर्थिक नुकसान की भरपाई तो किसी हद तक संभव है, लेकिन भावनात्मक आघात और असहायता का एहसास शब्दों में बयां करना कठिन है।
झरप गांव में बिजली गिरने से दो बैलों की मौत ने न केवल एक किसान का सहारा छीना, बल्कि पूरे गांव को भावुक कर दिया। घटना की जानकारी मिलते ही ग्रामीणों की भीड़ मौके पर जमा हो गई। किसी ने ढाढ़स बंधाया, तो किसी ने कंधा थामा। एक बुजुर्ग महिला की यह बात सबके दिल को छू गई “बैल नहीं मरे, भूषण का हौसला मरा है… खेत से उसका रिश्ता टूटता नजर आ रहा है।”
भूषण कोरे की पत्नी, जो खेत में कंधे से कंधा मिलाकर काम करती थीं, आज असहाय हैं। उनका सवाल था: “अब खेत कैसे जोतेंगे? बेटा छोटा है, साथ चला गया… सब कुछ भूषण पर ही था।” यह केवल एक किसान का नहीं, ग्रामीण भारत की जमीनी सच्चाई का आईना है—जहाँ एक बिजली किसान की पूरी दुनिया बदल देती है।
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घटना की गंभीरता को देखते हुए प्रशासनिक अमला मौके पर पहुंचा। तहसील कार्यालय, राजस्व विभाग, पशु चिकित्सा विभाग और ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों ने परिवार से मुलाकात की और हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता भी परिवार के साथ खड़े दिखे। प्रशासन ने कहा कि कोरे परिवार को सरकार की योजना के तहत मुआवजा दिलाने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी।
लेकिन सवाल यही है कि क्या सिर्फ आर्थिक मदद काफी है? आज गांववाले मांग कर रहे हैं कि पीड़ित किसान को मानसिक, सामाजिक और संरचनात्मक सहायता मिले। यह हादसा एक चेतावनी है कि किसानों की आपदा राहत प्रणाली में संवेदनशीलता और तत्परता दोनों की ज़रूरत है।