राजकुमार पटेल और हर्षवर्धन सपकाल (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Amravati Politics: अमरावती जिले के मेलघाट क्षेत्र के 3 बार विधायक रह चुके राजकुमार पटेल अब जल्द ही कांग्रेस पार्टी में प्रवेश लेने की चर्चा जोरों पर है। वे अब 5वीं बार दल बदल कर सकते है। इसके पूर्व वे बच्चू कडू के नेतृत्व वाली प्रहार जनशक्ति पार्टी से विधायक रह चुके हैं। जहां 2024 में भाजपा के केवलराम काले व्दारा उन्हें पराजय करने के बाद वे तटस्थ की भूमिका निभा रहे थे।
उल्लेखनीय है कि 2024 में विधानसभा चुनाव के दौरान पटेल ने पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना में भी प्रवेश करने की पूरी तैयारी कर ली थी। धारणी तहसील में एक बड़ी सभा का आयोजन भी पटेल ने किया था। किंतु किन्ही कारणों से एकनाथ शिंदे का दौरा टल गया और राजकुमार का शिवसेना में प्रवेश भी स्थगित हो गया।
अब बहुत दिनों के बाद वे कांग्रेस में जाने का मानस बनाने की चर्चा जोरों पर है। 3 सितंबर को अमरावती में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल की उपस्थिति में वे कांग्रेस प्रवेश करने की चर्चा है। इस खबर से अमरावती की राजनीति में हलचल पैदा हो गई है।
अमरावती ग्रामविकास विभाग ने जिला परिषद और पंचायत समिति में प्रभाग (गट) आरक्षण निर्धारित करने के लिए अब तक इस्तेमाल की जा रही चक्रीय आरक्षण प्रणाली को रद्द कर दिया है। इसकी जगह अब नई प्रणाली लागू की गई है, जिसके तहत जनसंख्या के घटते क्रम के आधार पर आरक्षण तय किया जाएगा। इस निर्णय से जिले के करीब 46 गटों को बड़ा झटका लग सकता है।
राज्य सरकार ने 20 अगस्त को इस संबंध में नया जीआर जारी किया है। इसके अनुसार, 2002 से लागू चक्रानुक्रम प्रणाली स्थगित कर दी गई है और 1996 के नियम को भी रद्द कर दिया गया है। अब यह आगामी चुनाव को पहला चुनाव माना जाएगा, जिससे अब तक लागू रहे आरक्षण के चक्र का कोई महत्व नहीं रह गया है। इस बदलाव के चलते अमरावती जिले के 59 में से 46 प्रभागों पर असर पड़ने की संभावना है।
यह भी पढ़ें – 100 ग्राम एमडी टिप से पकड़ा लाखों का माल, 3 तस्कर गिरफ्तार, नागपुर से अमरावती आ रहा था ड्रग्स
चिंता की बात यह है कि जहां पिछले 65 वर्षों में अनुसूचित जाति-जनजाति को आरक्षण नहीं मिला, वहां आगे कम से कम 25 वर्षों तक आरक्षण नहीं मिलेगा। इससे इन वर्गों के लोगों में अन्याय की भावना देखी जा रही है। 14 तहसीलों में जिला परिषद गटों के आरक्षण में बड़ा फेरबदल होगा। राजनीतिक विश्लेषकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस नई नीति से पंचायतराज व्यवस्था में सभी वर्गों की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य को आघात पहुंचा है।