पिपलाज देवी मंदिर में नवरात्रोत्सव (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Amravati News: नवरात्रि के पावन अवसर पर अमरावती जिले के तिवसा तहसील स्थित कुर्हा गांव में स्थित दो प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों श्री पिपलाज देवी मंदिर और श्री बालाजी मंदिर में हर साल की तरह इस बार भी नवरात्रि उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। इन दोनों मंदिरों का इतिहास लगभग 400 साल पुराना है और यह मंदिर आज भी अपनी खास परंपराओं व सांस्कृतिक परंपरा के कारण पूरे क्षेत्र में विशेष पहचान रखते हैं।
राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के लालसोट गांव से ताजी राजपूत परिवार अपने कुलदेवता श्री पिपलाज देवी के दो पाषाण मुखौटे लेकर विदर्भ आए थे।
यात्रा के दौरान उन्होंने इन्हें कुर्हा गांव के एक नीम के पेड़ के नीचे रखा, परंतु अगली सुबह यह मुखौटे वहां से नहीं हिले। इसे देवी की इच्छा मानते हुए उसी स्थान पर एक मिट्टी का मंदिर बनाया गया और यहीं से श्री पिपलाज देवी की पूजा शुरू हुई। इस बारे में स्व।सुरेशसिंह ताजी की पत्नी अलका ताजी ने बताया कि यह मंदिर उनके पूर्वजों द्वारा बनवाया गया और वर्षों बाद इस मंदिर का जीर्णोद्धार भी किया गया। मंदिर में हर वर्ष नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा, सुबह-शाम आरती और ग्रामवासियों की भागीदारी देखने को मिलती है।
सन् 1920 में निजाम शासन के दौरान नवमी की रैली पर रोक लगा दी गई थी, लेकिन देश की आजादी के बाद 1951 में यह परंपरा फिर से शुरू की गई। मंदिर के विश्वस्त संदीप राजपूत के अनुसार गांव में देवी के दो मंदिर हैं। एक बड़ी पिपलाज देवी और दूसरी छोटी देवी, जिसे बुंदेलखंड से आए राजपूतों ने लाकर स्थापित किया था। करीब 400 साल पहले तेलंगाना से आए तेलंगी ब्राह्मणों ने तिरुपति से पंचधातु की श्री बालाजी की मूर्ति लाकर कुर्हा गांव में स्थापित की थी।
शुरुआत में ये मूर्तियां गोविंद सोनार के पास रखी गईं, बाद में उनके घर में मंदिर बनवाया गया। निजामशाही के बाद यह मंदिर भोसले घराने के पंच सचिव आप्पाजी देशमुख की देखरेख में आया। आज यह मंदिर देशमुख परिवार के वंशजों द्वारा संचालित किया जा रहा है। श्री बालाजी देवस्थान अध्यक्ष विजय देशमुख ने बताया कि हर साल नवरात्रि के 10 दिनों तक मंदिर में विशेष पूजा होती है और गांव में उत्सव जैसा माहौल बना रहता है।
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नवरात्रि के हर दिन रात 9 बजे बालाजी के विभिन्न वाहनों पर शोभायात्रा निकाली जाती है। पहले दिन नाग वाहन,उसके बाद चक्र, मोर, वाघ, गरुड, हनुमान और पालना वाहन पर बालाजी की झांकी निकलती है। दशहरे के दिन बालाजी की पालखी सीमोल्लंघन के लिए गांव के बाहर जाती है और वापसी पर उन्हें सोना (प्रतीकात्मक) अर्पण किया जाता है। दशहरे के अगले दिन हाथी वाहन पर झांकी निकाली जाती है और इस दौरान गुलाल उड़ाया जाता है व प्रसाद (नारियल, पोहे, लड्डू, अनरसे) वितरित किए जाते हैं।
इन दोनों मंदिरों में हर साल नवरात्रि का उत्सव गांववासियों की सहभागिता, परंपरा और श्रद्धेने विशेष रूप से मनाया जाता है। राजस्थान और तेलंगाना से आए परिवारों की सांस्कृतिक परंपराओं का यह संगम कुर्हा गांव को धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।