
चेलका गांव के किसानों ने अपनाई आधुनिक तकनीक (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Barshitakli Farmers Insurance Demand: बार्शीटाकली तहसील में अतिवृष्टि के कारण खरीफ फसलों को भारी नुकसान हुआ है। इस संकट से जूझते हुए चेलका गांव के किसानों ने पारंपरिक फसलों से दूरी बनाकर आधुनिक और वैकल्पिक फसलों की ओर रुख किया है। इस वर्ष तहसील में प्याज एवं चिया के बीज की बुआई बड़े पैमाने पर की गई है। हालांकि, किसानों की शिकायत है कि बार्शीटाकली तहसील में प्याज फसल के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू नहीं है। किसानों ने मांग की है कि इस योजना को यहां भी शुरू किया जाए।
चेलका गांव के किसानों ने हर वर्ष रबी की चना और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों पर निर्भर रहने के बजाय प्याज बीजोत्पादन की शुरुआत की है। गांव का प्राकृतिक वातावरण, चारों ओर हरियाली और पर्याप्त जलस्रोत होने के कारण यहां सोयाबीन, तुअर, तिल्ली, मूंग जैसी विविध फसलें ली जाती हैं। कपास के बाद गेहूं की खेती किए जाने से फसल चक्र में बदलाव आता है। नंदकिशोर अहिरे ने गांव के 13 किसानों को उत्तम किस्म का प्याज बीज उपलब्ध कराया है। इस फसल पर एक एकड़ में लगभग 60 हजार रुपये का खर्च आता है। खरीफ की कपास, सोयाबीन और तुअर की फसलें खराब होने के बाद किसान इस नुकसान की भरपाई के लिए नए विकल्प तलाश रहे हैं।
डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय ने चेलका गांव को दत्तक लिया है। यहां के वैज्ञानिक किसानों को लगातार मार्गदर्शन दे रहे हैं। डॉ. प्रकाश घाटोल को मसाला फसलों, प्याज बीजोत्पादन, चिया बीज, केला, हल्दी और तिल्ली जैसी फसलें लेने की सलाह दे रहे हैं। वे नियमित रूप से गांव में आकर किसानों की समस्याओं को समझते हैं और समाधान सुझाते हैं।
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जिन किसानों के पास पर्याप्त पानी उपलब्ध है, उन्हें पारंपरिक फसलों के बजाय चिया बीज, प्याज बीज एवं कम खर्च वाली तिल्ली जैसी फसलों की खेती करने पर जोर दिया गया है। अकोला जिले के बालापुर, पातुर और अकोट तहसीलों में प्याज फसल के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू है। किसानों ने मांग की है कि बार्शीटाकली तहसील को भी इसमें शामिल कर उन्हें राहत प्रदान की जाए।






