अकोला सरकारी अस्पताल (सौ. सोशल मीडिया )
Government Hospital In Akola: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मरीजों के लिए जीवनदायी माने जाने वाले सरकारी चिकित्सा महाविद्यालय एवं सर्वोपचार अस्पताल में इन दिनों मरीजों की गंभीर अनदेखी हो रही है। अस्पताल में दवाओं का भारी टोटा होने से गंभीर मरीजों को उपचार न मिलने के कारण जान गंवाने की नौबत आ सकती है।
सामाजिक कार्यकर्ता नितिन जामनिक ने इस गंभीर स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए सीधे मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और चिकित्सा शिक्षा विभाग से शिकायत दर्ज कराई। इस पर कार्रवाई करते हुए अवर सचिव जोगदंड ने आयुक्त, चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान, मुंबई से तत्काल विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
नितिन जामनिक ने अपनी शिकायत में स्पष्ट किया है कि अस्पताल के औषधि विभाग में आंखों की ड्रॉप, कान की ड्रॉप, मलहम सहित कई जरूरी जीवनरक्षक दवाओं का स्टॉक पूरी तरह समाप्त हो गया है। डॉक्टरों द्वारा लिखी गई दवाएं अस्पताल में उपलब्ध न होने से मरीजों को बाहर की मेडिकल दूकानों से ऊंचे दामों पर दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं।
कई गरीब मरीजों के पास दवाएं खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं, जिसके चलते उनकी हालत गंभीर होती जा रही है और आखिरकार उन्हें मृत्यु का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति ऐसा प्रतीत कराती है कि सरकार खुद गरीब मरीजों को मौत की ओर धकेल रहा है, ऐसा तीखा आरोप जामनिक ने लगाया।
अस्पताल प्रशासन की ओर से मिली जानकारी के अनुसार प्रतिदिन लगभग 1,800 से 2,000 मरीज ओपीडी में आते हैं, जबकि करीब 1,000 मरीज भर्ती रहते हैं। इतनी बड़ी संख्या में मरीज होने के बावजूद संस्थागत स्तर पर केवल 30 प्रश धनराशि ही उपलब्ध है और वह भी ऑक्सीजन, सर्जिकल सामग्री और अन्य आवश्यक सेवाओं पर खर्च हो जाती है।
नितिन जामनिक ने सवाल उठाया कि जब फंड समाप्त हो जाता है तो जीवनरक्षक दवाओं की खरीद बंद करना क्या मरीजों की जान से खुला खिलवाड़ नहीं है? इसी बीच, इस शिकायत पर जीएमसी के अधिष्ठाता डा संजय सोनुने ने जो लिखित जवाब दिया, उसने मरीजों और उनके परिजनों का गुस्सा और बढ़ा दिया। अपने पत्र में डा। सोनुने ने कहा कि औषधि स्टॉक की मांग संबंधित विभागों से प्राप्त होने के बाद, उपलब्ध अनुदान की सीमा में ही दवाओं की खरीद की जाएगी।
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इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार से फंड मिलने तक अस्पताल अपने खर्च से दवाएं नहीं खरीदेगा। यह जवाब सुनकर मरीजों के परिजनों में तीव्र आक्रोश फैल गया। शिकायत पत्र में स्पष्ट कहा गया है कि गरीब मरीजों का जीवन बचाना अस्पताल प्रशासन की पहली जिम्मेदारी है। सरकार से निधि देर से मिलने के बहाने दवाएं न खरीदना स्वयं में एक गंभीर अपराध है और यह अस्पताल प्रशासन की खुली लापरवाही को दर्शाता है।