मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ
ग्वालियर: मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक हत्या मामले की सुनवाई के दौरान एक बड़ा मोड़ तब आया जब कोर्ट को यह पता चला कि मामले से जुड़ी कॉल डिटेल की अहम जानकारी छुपाई गई थी। इस खुलासे ने मामले को गंभीर बना दिया और हाईकोर्ट ने तत्काल कार्रवाई करते हुए भोपाल के डीआईजी को कठघरे में खड़ा कर दिया। कोर्ट ने न सिर्फ पांच लाख रुपये की क्षतिपूर्ति का आदेश दिया, बल्कि उनके खिलाफ विभागीय जांच और अदालत की अवमानना की कार्रवाई के निर्देश भी दे दिए। यह मामला उस वक्त का है जब वह दतिया जिले में एसपी के पद पर कार्यरत थे।
मामले की जांच में यह सामने आया कि हत्या से जुड़े कॉल रिकॉर्ड को लेकर कोर्ट को यह कहकर गुमराह किया गया कि जानकारी सुरक्षित है, जबकि तकनीकी रूप से यह डेटा पहले ही नष्ट हो चुका था। बाद में पता चला कि रिकॉर्ड सुरक्षित रखने के निर्देश पहले ही जारी किए जा चुके थे। बावजूद इसके, ट्रायल कोर्ट को झूठी जानकारी दी गई।
हाईकोर्ट ने उठाए सवाल
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए यह सवाल भी उठाया कि क्या ऐसे अफसर को फील्ड पोस्टिंग देना सही है। साथ ही डीजीपी से जवाब मांगा कि इस तरह की लापरवाही करने वाला अधिकारी क्या विभाग में बने रहने लायक है।
याचिकाकर्ता के आरोप से खुला राज
हत्या के मामले में आरोपी बनाए गए व्यक्ति ने कोर्ट को बताया कि उसे जानबूझकर फंसाया गया और उसकी बेगुनाही साबित करने वाले मोबाइल डेटा को नष्ट कर दिया गया। इसी आधार पर कोर्ट ने डीआईजी के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए आदेश जारी किया।
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अब इस आदेश के बाद डीआईजी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू होने के साथ ही अदालत की अवमानना का केस भी चलेगा। साथ ही उनकी वर्तमान पोस्टिंग पर भी खतरा मंडरा रहा है। बता दें कि ग्वालियर हत्याकांड में आरोपी बनाए गए याचिकाकर्ता मानवेंद्र सिंह ने कोर्ट को बताया कि पुलिस ने उन्हें झूठा फंसाया है और उनके मोबाइल का महत्वपूर्ण डाटा नष्ट कर दिया गया, जिसके बाद कोर्ट ने डीआईजी अवस्थी के खिलाफ विभागीय जांच और अवमानना कार्यवाही के आदेश दिए है।