-सीमा कुमारी
सनातन धर्म में ‘ऋषि पंचमी’ (Rishi Panchami) पर्व का बड़ा महत्व है। ‘ऋषि पंचमी’ महिलाओं का प्रमुख त्योहार है। इस वर्ष यह त्योहार आज यानी 1 सितंबर, गुरुवार को है। यह त्योहार हर साल भादो महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सप्तऋषि की पूजा करने का विधान है। महिलाएं व्रत रखकर सप्तऋषियों का पूजन करती हैं। यह पूजा मुख्य रूप से महिलाओं के रजस्वला दोष से शुद्धि और जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति के लिए किया जाता है। यही कारण है कि यह व्रत हर वर्ग की महिलाओं द्वारा रखा जाता है। आइए जानें ऋषि पंचमी का व्रत महिलाओं के लिए क्यों खास है और इस व्रत का शुभ मुहूर्त
ऋषि पंचमी तिथि आरंभ- 31 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 22 मिनट से
पंचमी तिथि समाप्त- 01 सितंबर को दोपहर 2 बजकर 49 मिनट पर
उदया तिथि के अनुसार ऋषि पंचमी 01 सितंबर को मनाई जाएगी।
ऋषि पंचमी पूजा मुहूर्त- 01 सितंबर को सुबह 11 बजकर 04 मिनट से दोपहर 1 बजकर 37 मिनट तक
ऋषि पंचमी की पूजा के लिए एक चौकी पर सप्त ऋषियों की मूर्ति या कुमकुम से चित्र बनाए जाते हैं। इसके बाद सबसे पहले गणेश जी का पूजन किया जाता है, उसके बाद सप्त ऋषियों का पूजन किया जाता है। इसके बाद ऋषि पंचमी की कथा सुनी जाती है। इस दिन फलाहार के रूप में मोरधन खाया जाता है। शाम के समय भोजन ग्रहण कर सकती हैं।
माना जाता है कि ये व्रत महिलाओं के लिए काफी खास होता है। इस व्रत को करने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऋषि पंचमी का व्रत महिलाओं के मासिक-धर्म से संबंधित है। मासिक-धर्म के दौरान महिलाओं को धार्मिक कार्यों में शामिल होने की मनाही होती है। अगर कोई महिला मासिक धर्म के दौरान किसी पूजा आदि में शामिल हो जाती है, तो उसे कई दोषों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में ऋषि पंचमी के दिन व्रत करके महिला हर तरह के दोषों से छुटकारा पा सकती हैं।
भविष्यपुराण के अनुसार, एक राज्य में उत्तक नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी और पुत्र-पुत्री के साथ रहता था । ब्राह्मण की कन्या जब विवाह योग्य हुई तो वह उसका विवाह सुयोग्य वर से किया । कुछ समय के बाद ब्राह्मण के दामाद की मृत्यु हो गई। जिसके बाद उसकी बेटी अपने मायके वापस आ गई। एक दिन जब बेटी सो रही थी तो मां ने देखा कि उसके शरीर पर कीड़े लग गए हैं । ब्राह्मणी ने पति से बेटी की इस दशा का कारण पूछा। जिसके बाद ब्रह्मण ने बताया कि पूर्वजन्म में उसकी बेटी ने माहवारी के दौरान पूजा की सामग्रियों को स्पर्श कर लिया था। साथ ही पिछले और वर्तमान जन्म में उसने ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया था । जिसकी वजह से उसकी ये दुर्दशा हुई है। इसके बाद पिता के बताए अनुसार उसकी पुत्री ने इन कष्टों से छुटकारा पाने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत किया। कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से उसकी बेटी को सौभाग्य की प्राप्ति हुई।