राजीव गांधी के साथ गुलाम नबी आजाद और राहुल गांधी-(फोटो सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्कः डॉ भीमराव अंबेडकर जिस वर्ष संविधान बना रहे थे उसी साल भारत के स्वर्ग कश्मीर घाटी में एक ऐसे नेता का जन्म हुआ था जिसने पंडित नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक की राजनीति देखी। 1972 में उस सख्स ने कांग्रेस पार्टी एक छोटे से कार्यकर्ता के रूप में अपने सियासी सफर की शुरूआत की। एक वक्त आया जब कांग्रेस ने उस सख्स पर खूब प्यार लुटाया, लोकसभा सांसद बनवाया, राज्यसभा सांसद बनवाया जब कांग्रेस सत्ता में आई तो केंद्रीय मंत्री के पद से भी नवाजा। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री भी बनाया, लेकिन जब दिन खराब हुए तो कांग्रेस से बेवफाई कर दी।
उस शख्स ने देश की सियासत में अपना अलग मुकाम बनाया, उनका जितना सम्मान कांग्रेस पार्टी में था उतना ही भाजपा में था। इस राजनेता को हम गुलाम नबी आजाद के नाम से जानते हैं। उनका जन्म साल 1949 में कश्मीर के डोडा जिले में एक साधारण परिवार में हुआ था।
गुलाम नबी करीब दो दशक से ज्यादा देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में रहे। राजनीतिक रूप से लगातार कमजोर हो रही कांग्रेस ने 2021 में उन्हें राज्यसभा न भेंजने का फैसला किया। यहीं उनका मन खिन्न हो गया। इसके बाद से गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस नेतृत्व में दूरियां बढ़ने लगी। एक दिन ऐसा आया जब उन्होंने कांग्रेस के साथ अपने सियासी सफर का अंत कर दिया। इसके बाद उन्होंने डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद नामक राजनीतिक पार्टी बनाई है। अब इसी पार्टी को बढ़ाने में लगे हुए हैं।
पीएम मोदी संसद में रोने लगे थे
तारीख- 9 फरवरी साल- 2021, कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद के लिए पीएम मोदी बोलते हुए भावुक हो गए। किसी को अंदाजा नहीं था कि यह क्या हो रहा है, लेकिन पीएम मोदी राज्यसभा में अपने दोस्त के योगदान का लगातार जिक्र करते जा रहे थे। प्रधानमंत्री इतने भावुक हुए की बोलते-बोलते रुक गए। उनके आंसू आने लगे। उन्होंने अपने आंसू पोछे। फिर टेबल पर रखे गिलास से पानी पिया और कहा सॉरी। इसके बाद उन्होंने फिर अपना संबोधन शुरू किया। यह घटना जिसने देखी जब चकित थे।
गुलाम नबी आजाद और राहुल गांधी गुफ्तगू करते हुए
गुलाम नबी आज़ाद का जन्म 7 मार्च 1949 को जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में हुआ था। वे एक साधारण परिवार से आते हैं और प्रारंभिक शिक्षा अपने गृह राज्य में प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने जम्मू-कश्मीर विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक और राजनीति विज्ञान में परास्नातक की डिग्री हासिल की। प्रारंभ से ही उनकी रुचि समाजसेवा और राजनीति में थी, जिससे वे कांग्रेस पार्टी से जुड़े।
गुलाम नबी आज़ाद का राजनीतिक सफर 1970 के दशक में शुरू हुआ, जब वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े। वे पहली बार 1980 में महाराष्ट्र से लोकसभा सांसद बने। इसके बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों में कार्य किया, जिनमें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, संसदीय कार्य मंत्रालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय शामिल हैं।
2005 में, उन्हें जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने विकास और शांति स्थापित करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके कार्यकाल में राज्य में कई बुनियादी ढांचे के विकास कार्य हुए। हालांकि, 2008 में अमरनाथ भूमि विवाद के कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस में कई दशकों तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और गांधी परिवार के विश्वस्त सहयोगी रहे। वे राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी रहे, जहां उन्होंने भाजपा सरकार की नीतियों पर मुखर होकर आलोचना की। हालांकि, वे अपने मध्यमार्गी और संतुलित दृष्टिकोण के लिए भी जाने जाते हैं, जिससे भाजपा और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं के साथ उनके व्यक्तिगत संबंध मधुर रहे हैं।
राजनीतिक विवाद और कांग्रेस से अलगाव
गुलाम नबी आज़ाद के राजनीतिक जीवन में कई विवाद भी जुड़े रहे हैं। 2020 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व संकट पर सवाल उठाते हुए ‘जी-23’ समूह का हिस्सा बने, जिसने पार्टी में आंतरिक सुधारों की मांग की।
2022 में, उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और अपनी नई पार्टी ‘डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी’ (DAP) की स्थापना की। कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने गांधी परिवार की कार्यशैली पर कई सवाल उठाए, जिससे उनके और कांग्रेस के बीच संबंधों में खटास आ गई। भाजपा के प्रति उनके नरम रुख के कारण कई कांग्रेस नेताओं ने उन पर भाजपा के साथ मिलीभगत के आरोप लगाए।