पीएम मोदी, ममता बनर्जी व हुमायूं कबीर (कॉन्सेप्ट फोटो - डिजाइन)
West Bengal Politics: पश्चिम बंगाल में एक महीने पहले TMC से निकाले गए विधायक हुमायूं कबीर राज्य में बाबरी मस्जिद बनाने की जोरदार वकालत कर रहे हैं। उनके कामों ने सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया है। हालांकि, ममता बनर्जी ने अब एक नई घोषणा करके कबीर की राजनीतिक चालों को करारा झटका दिया है।
बाबरी मस्जिद के लिए हुमायूं की मांग के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल के सबसे बड़े महाकाल मंदिर के बारे में एक बड़ा अपडेट दिया है। सोमवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोषणा की कि राज्य के सबसे बड़े महाकाल मंदिर की नींव जनवरी के दूसरे हफ्ते में रखी जाएगी। उन्होंने यह महत्वपूर्ण घोषणा न्यू टाउन में एक दुर्गा मंदिर की नींव रखते समय की।
ममता बनर्जी की इस घोषणा के बाद सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। हर तरफ से केवल से सवाल उठ रहे हैं कि क्या ममता बनर्जी का यह दांव आने वाले बंगाल चुनाव में कामयाब होने वाला है? क्या ममता बनर्जी ने हुमायूं कबीर के लिए रणनीतिक काट खोज ली है?
दरअसल, पूर्व टीएमसी नेता हुमायूं कबीर ने 6 दिसंबर को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिल में बाबरी मस्जिद का शिलान्यास कर दिया। इससे पहले जब उन्होंने यह ऐलान किया था तभी ममता बनर्जी ने सांप्रदायिक राजनीतिक का हवाला देते हुए कबीर को टीएमसी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
हुमायूं कबीर द्वारा बाबरी मस्जिद की नींव रखे जाने के बाद बीजेपी ने ममता बनर्जी को टारगेट करना शुरू कर दिया। बीजेपी ने आरोप लगाया की तृणमूल कांग्रेस ध्रुवीकरण के लिए इस विधायक का इस्तेमाल कर रही हैं। साथ ही उन्हें चेतावनी देते हुए यह भी कहा कि वह आग से खेल रही हैं।
दूसरी तरफ मस्जिद की नींव रखने के बाद हुमायूं कबीर ने जनता उन्नयन पार्टी बनाकर आगामी बंगाल चुनाव में ताल ठोंकने का ऐलान कर दिया। इस बीच उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM और नौशाद सिद्दीकी के राजनैतिक दल आईएसएफ के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने की बात भी कही।
इन सब सियासी घटनाओं के बाद ममता बनर्जी ने एक तरफ न्यू टाउन में एक दुर्गा मंदिर की नींव रखी तो दूसरी तरफ जनवरी के दूसरे हफ्ते में महाकाल मंदिर के शिलान्यास का ऐलान कर दिया। ममता बनर्जी के इस कदम के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
राजनैतिक जानकारों का कहना है कि ममता इन ऐलानों के जरिए सबसे पहले तो बीजेपी के उन नैरिटिव्स को तोड़ने की कोशिश कर रही हैं, जिनमें टीएमसी और उनपर मुस्लिमों की राजनीति करने के आरोप लगाए जाते हैं। अगर यह नैरेटिव टूट गया तो वह अपनी सबसे बड़ी विरोधी पार्टी को मात देने में कामयाब हो जाएंगी।
इसके अलावा बंगाल में 30 सीटों पर मुस्लिम वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं। जबकि 50 के करीब ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिमों का प्रभाव है। ऐसे में यदि किसी को भी यहां सत्ता में आना है तो उसके लिए हिंदू समुदाय का साथ होना बेहद जरूरी है। हुमायूं कबीर नई पार्टी के दम पर पहली बार चुनाव में उतरेंगे ऐसे में एक साथ सारा मुस्लिम वोट उनकी तरफ चला जाए ऐसा शायद ही संभव हो।
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ऐसे में यदि ममता बनर्जी को आधे मुस्लिम वोटर्स का सपोर्ट मिलता है और साथ में हिंदुओं का भी साथ मिल जाता है तो वह आराम से 2026 की चुनावी मंझाधार को पार करने में कामयाब हो जाएंगी। यही वजह है कि ममता बनर्जी ने यह ऐलान किया है। फिलहाल सियासत में कब कौन सा दांव फिट हो जाए और कौन सी चाल उल्टी पड़ जाए उसके बारे में सटीक अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल काम है। ऐसे में देखना अहम होगा कि ममता बनर्जी का ये दांव कामयाब हो पाता है या नहीं।