(कांसेप्ट फोटो सौ. सोशल मीडिया)
नई दिल्ली : झारखंड में विधानसभा चुनाव के दौरान आदिवासियों की लंबे समय से चली आ रही मांगें एक बार फिर तेज हो गई हैं। आदिवासी लोग एक स्वतंत्र धर्म के रूप में अपनी पहचान चाहते हैं। वोटों की बड़ी संख्या को देखते हुए झारखंड में सक्रिय सभी राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर संज्ञान लिया है। सभी प्रमुख पार्टियों ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में धर्मकोड़ा सरना के पक्ष में बात की। चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बीजेपी सरना धर्म कोड के मुद्दे का अध्ययन करेगी और उसके अनुसार निर्णय लेगी। लेकिन असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा तो अमित शाह से भी एक कदम आगे रहे। उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो सरना कोड लागू करेगी। कांग्रेस और जेएमएम ने भी इस मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त किए हैं और इसे चुनावी बहस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है।
झारखंड की लगभग 27% आबादी जनजातियों या जनजातीय समुदायों से संबंधित है। जब आदिवासीवाद की बात आई तो पहले यह माना जाता था कि आदिवासीवाद कोई धर्म नहीं बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है। झारखंड, बिहार, उड़ीसा, बंगाल और छत्तीसगढ़ राज्यों में यह गतिविधि मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा की जाती है। आदिवासी समुदायों की अधिकांश आबादी किसी न किसी प्रकार की हिंदू मान्यताएं और रीति-रिवाज रखती है। उनके संस्कार, अनुष्ठान, जीवनशैली और अन्य परंपराएं भी सनातन हिंदू धर्म का पालन करती हैं। वे प्राचीन काल से हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते थे। वे पेड़-पौधों और पहाड़ों की भी पूजा करते हैं।
झारखंड में सरना धर्म कोड पर सियासत तेज ( कांसेप्ट फोटो सौ. सोशल मीडिया)
आदिवासी समुदायों की मांग है कि सरना धर्म को अन्य समुदायों के धर्मों के साथ भारत की जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए। जब आदिवासी समुदाय के लोग फॉर्म भरते हैं, तो वे अपने फॉर्म में सरना के धर्म का उल्लेख कर सकते हैं। अन्य धर्मों के लोगों की तरह वे भी अपने फॉर्म के धर्म में हिंदू धर्म, इस्लाम, सिख धर्म, ईसाई इत्यादि लिखते आ रहे हैं। इसके साथ ही साल 2020 में झारखंड विधानसभा में सर्वसम्मति के साथ सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग वाला प्रस्ताव पास हो चुका है और उसे केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था।