सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के लिए आए कपल को डिनर डेट पर भेजा
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसे कपल का मामला पहुंचा, जो तलाक की प्रक्रिया से गुजर रहा है और अपने तीन साल के बेटे की कस्टडी को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। इस दौरान पत्नी ने बेटे को विदेश ले जाने की अनुमति मांगी, लेकिन कोर्ट ने इस संवेदनशील मुद्दे को देखते हुए एक अनोखा कदम उठाया। कोर्ट ने दोनों से अपील की कि वे कोर्टरूम के बाहर आरामदायक माहौल में मिलें और मतभेदों को सुलझाने की कोशिश करें। कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ उनके रिश्ते के लिए नहीं, बल्कि उनके बच्चे के मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए भी जरूरी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कैंटीन का खाना पसंद नहीं आए, तो वे एक बेहतर ड्रॉइंग रूम का इंतजाम कर देंगे ताकि बात आसानी से हो सके।
जब एक जोड़ा तलाक की कगार पर हो और अदालत उन्हें सख्त फैसले की बजाय डिनर डेट पर भेजे, तो यह किसी फिल्मी सीन जैसा लगता है। लेकिन ये हकीकत है, जो सुप्रीम कोर्ट में देखने को मिली। कोर्ट ने तलाक की प्रक्रिया से गुजर रहे एक कपल को सलाह दी कि वे अतीत को एक कड़वी गोली समझकर निगल लें और अपने तीन साल के बच्चे के भविष्य को देखते हुए एक बार फिर साथ बैठकर बात करें। कोर्ट ने दोनों से कहा कि वह शांत माहौल में डिनर करें, क्योंकि कॉफी पर भी सुलह की शुरुआत हो सकती है।
डिनर की सलाह, न्याय की नई दिशा
कोर्ट ने कहा कि तलाक से पहले अगर दोनों एक बार फिर खुले मन से बात करें, तो हो सकता है रिश्ता बच जाए। सिर्फ एक डिनर या कॉफी डेट से भी चीजें बदल सकती हैं। कोर्ट की यह सलाह न सिर्फ मानवीय थी, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी देती है कि रिश्ते बातचीत से संभाले जा सकते हैं।
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बच्चे के भविष्य की चिंता, कोर्ट की संवेदना
कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि माता-पिता के बीच का तनाव बच्चे पर बुरा असर डाल सकता है। एक तीन साल के मासूम के लिए जरूरी है कि वह एक सकारात्मक माहौल में बड़ा हो। इसी वजह से कोर्ट ने दोनों से कहा कि वे अपने अहंकार को दरकिनार करें और बेटे के हित में मिलकर हल निकालें। कोर्ट ने तलाक जैसे गंभीर मसले को केवल कानूनी मुद्दा नहीं समझा, बल्कि इसमें छिपे भावनात्मक पहलुओं को भी महत्व दिया। यह दिखाता है कि अदालतें अब केवल कानून नहीं, संवेदना के साथ भी फैसले ले रही हैं।