सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया (फोटो- सोशल मीडिया)
Supreme Court on Road Accident: सुप्रीम कोर्ट ने ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बिना किसी चेतावनी और संकेत दिए बिना हाईवे पर अचानक ब्रेक लगाना लापरवाही मानी जाएगी। न्यायालय ने कहा कि अगर इस तरह के कृत्य के कारण कोई दुर्घटना होती है, तो कार चालक को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने मंगलवार को यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा, ‘हाईवे पर वाहन तेज गति से चलते हैं और अगर कोई चालक अपना वाहन रोकना चाहता है, तो पीछे आ रहे वाहनों को संकेत देना जरूरी है।’
इस मामले में मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल (एमएसीटी) ने एक कार चालक को बरी कर दिया था और एक अन्य व बस चालक को 20:80 के अनुपात में जिम्मेदार ठहराया था। मद्रास उच्च न्यायालय ने कार चालक को 40% और बस चालक को 30% दोषी ठहराया, जबकि अन्य को 30% जिम्मेदार ठहराया। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को बदलते हुए कार चालक की गलती को सबसे अहम माना।
यह मामला 7 जनवरी 2017 को तमिलनाडु के कोयंबटूर में हुई एक दुर्घटना से जुड़ा है। इंजीनियरिंग के छात्र एस. मोहम्मद हकीम अपनी बाइक से जा रहे थे, तभी एक कार चालक ने अचानक ब्रेक लगा दिए। इस दौरान हकीम की बाइक एक कार से टकरा गई और वह सड़क पर गिर पड़े। उसी दौरान पीछे से आ रही एक बस ने उन्हें कुचल दिया, जिसके बाद इलाज के दौरान उनका बायां पैर काटना पड़ा। मामले की सुनवाई के दौरान कार चालक ने अदालत को बताया कि उसने ब्रेक इसलिए लगाए क्योंकि उसकी गर्भवती पत्नी को उल्टी जैसा महसूस हो रहा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया।
इस दौरान अदालत ने कहा, ‘कार चालक द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। अगर कोई आपात स्थिति भी थी, तो बीच हाईवे पर अचानक ब्रेक लगाना खतरनाक और गैर-जिम्मेदाराना है।’
सुप्रीम कोर्ट ने दुर्घटना के लिए तीनों पक्षों को जिम्मेदार माना और कहा कि कार चालक 50% और बस चालक 30% जिम्मेदार है। इसके साथ ही, एक अन्य जो बाइक पर सवार था उसकी 20% सहभागी लापरवाही है। अदालत ने माना कि बाइक सवार के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था और उसने कार से पर्याप्त दूरी बनाए नहीं रखी, जो उसकी लापरवाही थी।
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सुप्रीम कोर्ट ने कुल मुआवजा 1.14 करोड़ तय किया था। लेकिन बाइक सवार की 20% लापरवाही के कारण यह राशि घटकर 91.2 लाख रह गई। यह राशि कार और बस बीमा कंपनियों को चार हफ्तों के भीतर चुकाने का निर्देश दिया गया है।