प्रतीकात्मक फोटो (सोर्स - सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा मामला सामने लाया है जो हर माता-पिता और समाज के लिए सोचने का विषय है। कोर्ट ने एक 11 साल के बच्चे के पिता को अपने बेटे से हर रविवार मिलने की अनुमति दी है, भले ही बच्चा इन मुलाकातों को लेकर अनिच्छुक और परेशान नजर आ रहा हो। अदालत ने मां को भी जमकर फटकार लगाई है, जो लगातार पिता के मिलने के अधिकार में अड़चन डालने की कोशिश कर रही थी। कोर्ट ने कहा कि बच्चे की उम्र इतनी नहीं है कि वह खुद अपने हित में फैसला कर सके, और यह जिम्मेदारी अदालत की है कि वह बच्चे के भविष्य के लिए सही रास्ता तय करे।
सुप्रीम कोर्ट के जजों की पीठ ने यह साफ किया कि बच्चा अभी नाबालिग है और उसका मन कई बार बदल सकता है। इसलिए बच्चे की झिझक को लेकर मां की ओर से बनाई जा रही दीवार को अदालत ने उचित नहीं माना। पिता को हर रविवार शाम 4 बजे से 6 बजे तक बेटे से मिलने की इजाजत दी गई है और यह मुलाकात बच्चे की देखभाल करने वाले व्यक्ति की उपस्थिति में होगी।
यह फैसला तब आया जब पिता ने हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें फैमिली कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया था। पिता का कहना था कि बच्चे की परवरिश में दोनों माता-पिता का समान योगदान जरूरी है, और बच्चे का पिता से लगाव मां के दखल के कारण धीरे-धीरे कम होता गया है। वहीं, मां की ओर से कहा गया कि पिता का व्यवहार और अनदेखी बच्चे को मानसिक रूप से परेशान कर रही है। लेकिन अदालत ने साफ कहा कि बच्चा खुद इतना परिपक्व नहीं है कि फैसला ले सके, इसलिए अदालत को ही उसके सर्वोत्तम हित का ध्यान रखना होगा।
यह मामला तब और पेचीदा हो गया जब फैमिली कोर्ट ने पहले ही पिता को सप्ताहांत में मिलने और रोजाना वीडियो कॉल की अनुमति दे दी थी, लेकिन मां ने इसका पालन नहीं किया। पिता को आखिरकार फिर कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। जनवरी 2024 में फैमिली कोर्ट ने आदेश दिया कि पिता और बेटे की मुलाकात सुनिश्चित की जाए, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे पलटते हुए दोबारा विचार करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे घटनाक्रम को देखकर कहा कि मां का रवैया बाधा डालने वाला रहा है और अगर आगे भी मां ने ऐसी कोई कोशिश की तो सख्त कदम उठाए जाएंगे। अदालत ने तीन महीने के अंदर इस मामले को तेजी से निपटाने का आदेश दिया है और तब तक हर रविवार की मुलाकात जारी रखने का निर्देश दिया है।
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यह मामला एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि तलाक और झगड़ों के बीच सबसे ज्यादा प्रभावित मासूम बच्चे ही होते हैं। ऐसे में अदालत ने एक बेहद संवेदनशील और दूरदर्शी फैसला लिया है, जिससे भविष्य में माता-पिता और समाज को सीखने की जरूरत है। अब देखने वाली बात यह होगी कि मां और पिता इस फैसले का पालन कैसे करते हैं और क्या बच्चा दोबारा अपने पिता से वही रिश्ता बना पाएगा, जो कभी बेहद गहरा हुआ करता था।