प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (डिजाइन फोटो)
PM Narendra Modi Birthday: 17 सितंबर को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 75 वर्ष के होने जा रहे हैं। संघ की शाखा से उठकर उन्होंने सत्ता के शीर्षतम पद को सुशोभित किया है। लेकिन उसका पहला पड़ाव था गुजरात का मुख्यमंत्री बनना। क्योंकि तीन बार लगातार गुजरात का सीएम चुने जाने के बाद उन्हें दिल्ली का रास्ता दिखाई दिया।
गुजरात का सीएम बनने के लिए नरेन्द्र मोदी को कितनी मेहनत करनी पड़ी? उन्होंने ऐसे कौन से सियासी दांव चले कि अटल बिहार वाजपेयी ने उन्हें खुद गुजरात की सत्ता सौंप दी? इस आर्टिकल में इन सभी सवालों के जवाब आपको मिलने वाले हैं। तो चलिए शुरू करते हैं…
आरएसएस के भीतर नरेन्द्र मोदी का उत्थान तेज़ी से हुआ, लेकिन वास्तव में राजनीतिक शक्ति हासिल करने के लिए उन्हें आरएसएस के विशुद्ध वैचारिक दायरे से आगे बढ़कर भाजपा में प्रवेश करना पड़ा। इसकी शुरुआत 1987 में हुई जब उन्हें गुजरात का संगठन सचिव नियुक्त किया गया। मोदी आठ साल तक संगठन सचिव रहे।
संयोग से, यही वह समय था जब राज्य में भाजपा का अभूतपूर्व विकास हुआ। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1985 में भाजपा के पास 11 सीटें थीं और एक दशक बाद, पार्टी के पास 121 सीटें थीं। हालांकि राज्य में पार्टी के दो बेहद वरिष्ठ नेता, केशुभाई पटेल और शंकरसिंह वाघेला, जो दोनों ही भाजपा अध्यक्ष रह चुके थे, मोदी अब राज्य में सत्ता का तीसरा केंद्र बन गए थे।
इस दौरान, गुजरात में सांप्रदायिक दंगों की तीन बड़ी घटनाएं हुईं और प्रत्येक दंगे में मरने वालों की संख्या पिछले दंगे से ज़्यादा थी। 1985 में 208, 1990 में 219 और 1992 में 441 लोग मारे गए। बढ़ते सांप्रदायिक तनाव का भाजपा को फायदा हुआ और पार्टी का हिंदू वोट बैंक बढ़ा। इस तनाव का फायदा उठाने के लिए, भाजपा ने दो राज्यव्यापी अभियान शुरू किए, जिनमें मोदी ने पर्दे के पीछे से अहम भूमिका निभाई।
RSS के एक कार्यक्रम में नरेन्द्र मोदी (सोर्स- सोशल मीडिया)
1987 में पहली यात्रा को न्याय यात्रा और 1989 में दूसरी यात्रा को लोक शक्ति रथ यात्रा कहा गया। 1990 में, जब भाजपा अध्यक्ष आडवाणी ने अपनी अयोध्या रथ यात्रा शुरू की, जिसके कारण बाद में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, तो उन्होंने गुजरात के सोमनाथ मंदिर से यात्रा शुरू की। अभियान के पहले चरण की सभी व्यवस्थाएं मोदी ने की थीं।
अगले वर्ष, मोदी को अपना पहला राष्ट्रीय कार्यभार मिला जब उन्हें भाजपा के नए अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में एक राष्ट्रव्यापी यात्रा का आयोजक बनाया गया। यह यात्रा तमिलनाडु के दक्षिणी सिरे से शुरू हुई और श्रीनगर में तिरंगा फहराने के साथ समाप्त हुई। एकता यात्रा के दौरान, मोदी ने इसका मार्ग तय किया और रास्ते में जगह-जगह समारोह आयोजित किए। मोदी ने उन्हें जो काम सौंपा गया था, उसे बखूबी निभाया।
1995 के विधानसभा चुनावों में, 182 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की सीटें 67 से दोगुनी होकर 121 हो गईं, जबकि कांग्रेस 45 सीटों पर सिमट गई। पार्टी ने केशवभाई पटेल को मुख्यमंत्री चुना और मोदी उनके साथ ज़्यादा समय बिताने लगे। इस वजह से वाघेला और ज़्यादा अलग-थलग पड़ गए।
लेकिन वाघेला महत्वाकांक्षी और अधीर भी थे। 1995 में, वे भाजपा के आधे विधायकों को मध्य प्रदेश के एक रिसॉर्ट में ले गए और धमकी दी कि अगर पटेल को नहीं हटाया गया और उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया, तो वे सरकार गिरा देंगे। केंद्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ा और अटल बिहारी वाजपेयी को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए गुजरात जाना पड़ा।
पटेल को तीसरे उम्मीदवार सुरेश मेहता के लिए जगह बनाने को कहा गया और नरेन्द्र मोदी को सज़ा के तौर पर सियासी वनवास देते हुए उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय सचिव बनाकर दिल्ली भेज दिया गया, जहां उन्हें पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़ और जम्मू-कश्मीर का ज़िम्मा सौंपा गया।
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उम्मीदों के विपरीत, वाघेला 1996 का लोकसभा चुनाव हार गए। उन्होंने इसके लिए आरएसएस, मोदी और पटेल को ज़िम्मेदार ठहराया। उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ लिया और बागी उम्मीदवारों के साथ एक नई पार्टी बनाई। मेहता की सरकार गिर गई और वाघेला कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए।
दिल्ली में निर्वासन झेल रहे मोदी के लिए यह एक चमत्कार था। वे रोज़ाना पार्टी मुख्यालय में भाजपा के कई राष्ट्रीय नेताओं से मिलते थे। मोदी ने वाघेला के दलबदल का पूरा फ़ायदा उठाया। वे हर किसी से कहते कि वे पार्टी को वाघेला के बारे में आगाह करने वाले पहले व्यक्ति थे।
इससे अप्रत्यक्ष रूप से मोदी का कद बढ़ गया। 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, तो मोदी को एक बार फिर पदोन्नत कर पार्टी का राष्ट्रीय संगठन सचिव बनाया गया, यह पद देश भर में भाजपा और आरएसएस के बीच एक सेतु का काम करता है।
1999 में कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने और केशुभाई पटेल की मुख्यमंत्री के रूप में वापसी के बाद वाघेला की सरकार जल्द ही गिर गई। इस दौरान वे संजय जोशी, हरेन पांडे और गोवर्धन झड़ापिया जैसे युवा नेताओं से घिरे रहे, जबकि दिल्ली में बैठे मोदी अभी भी इस फ्रेम से गायब थे।
नरेन्द्र मोदी की पुरानी तस्वीर (सोर्स- सोशल मीडिया)
लेकिन पटेल के नेतृत्व में भाजपा कई स्थानीय चुनाव हार गई और 2001 में पार्टी को दो उपचुनावों में भी हार का सामना करना पड़ा। इसके पीछे मुख्य कारण कच्छ में आए भूकंप के बाद की स्थिति को ठीक से न संभाल पाना था। इस दौरान मोदी ने केंद्र में अपने पूर्व सहयोगी पटेल के खिलाफ एक मौन अभियान चलाया।
उस समय दिल्ली में वरिष्ठ पद पर बैठे एक बीजेपी नेता एक मैगजीन से कहा था कि “मोदी हमसे शिकायत करते कि कैसे केशुभाई असफल हो रहे हैं। वह सिर्फ विकास के बारे में सोचते हैं, न कि राज्य में हिदुंत्व के विकास के पर ध्यान देते हैं। मोदी पार्टी के नेताओं को हमेशा केशुभाई के बारे में बुरी बातें कहते थे। ठीक उसी तरह जैसा उन्होंने वाघेला के मामले में किया था।”
उसके बाद वाजपेयी ने अचानक मोदी को राज्य का सीएम बना दिया। जिसका जिक्र पीएम मोदी ने खुद करते हुए कहा कि ”उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाना उनके लिए भी आश्चर्यजनक था।” पीएम मोदी की आधिकारिक जीवनी लेखक को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि वह एक टीवी कैमरामैन के साथ थे तभी उन्हें वाजपेयी का कॉल आया कि शाम को बैठक है।
पीएम मोदी ने कहा, “जब में उनसे मिला तो उन्होंने कहा, ‘पंजाबी खाना खाकर आप मोटे हो गए हैं आपको वजन कम करना चाहिए। यहां से जाइए। दिल्ली छोड़ दीजिए।’ मैंने पूछा, ‘कहां जाऊं?’ उन्होंने जवाब दिया, ‘गुजरात जाइए, आपको वहां काम करना है।’ मुझे इस बात का अंदाजा नहीं था कि अटलजी मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं।
लेकिन तब अटलजी ने कहा था,‘नहीं…नहीं, आपको चुनाव लड़ना होगा।’ जब मुझे पता लगा कि मुझे मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है तो मैंने अटलजी से कहा, ‘ये मेरा काम नहीं है। मैं गुजरात से छह सालों से दूर हूं। मुझे मुद्दों का भी पता नहीं है। मैं वहां क्या करूंगा? यह मेरी पसंद का काम नहीं है। मैं किसी को जानता भी नहीं।’ पांच या छह बीतने के बाद मुझे उस काम के लिए तैयार होना पड़ा जो पार्टी चाहती थी।”
वहीं, पार्टी की कई नेताओं ने एक मैगजीन के पत्रकार से कहा था कि मोदी ने इस काम को पाने के लिए जमकर लॉबिंग की थी। जबसे वह दिल्ली आए थे तब से ऐसा ही कर रहे थ। एक बीजेपी नेता ने तो यह भी कहा कि “उन्हें पता था कि गुजरात बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री नहीं चुनेगी इसलिए यह काम केंद्र के किसी बड़े व्यक्ति से करवाना होगा।
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गुजरात भाजपा के विधायक इस फैसले का विरोध न करें, इसके लिए तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष केशुभाई ठाकरे मोदी के साथ गुजरात गए और उनके साथ एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता मदन लाल खुराना भी थे। उनकी उपस्थिति ने यह सुनिश्चित किया कि बिना निर्वाचित हुए मुख्यमंत्री बना व्यक्ति गुजरात में सुरक्षित रूप से उतर सके। मोदी की नियुक्ति RSS के लिए एक बड़ी सफलता थी। इतिहास में पहली बार एक सच्चा प्रचारक मुख्यमंत्री बना था।