
RSS प्रमुख मोहन भागवत (फोटो- सोशल मीडिया)
RSS Cheaf Mohan Bhagwat Statement on Secularism: क्या भारत वास्तव में एक सेक्युलर राष्ट्र है और हिंदुत्व की असली परिभाषा क्या है? अक्सर इस सवाल पर लंबी बहस होती है, लेकिन इस बार जवाब खुद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की तरफ से आया है। उन्होंने हिंदुत्व और सेक्युलरिज्म को लेकर चल रहे तमाम भ्रमों को दूर करने की कोशिश की है। भागवत ने साफ शब्दों में कहा है कि देश किसी धर्म से नहीं, बल्कि कानून से चलता है। उनका यह बयान न केवल चौंकाने वाला है बल्कि हिंदुत्व की एक नई और व्यावहारिक परिभाषा भी तय करता है, जिसे आज की युवा पीढ़ी को समझना बहुत जरूरी है।
जब उनसे पूछा गया कि सेक्युलरिज्म के ढांचे में हिंदुओं की रक्षा कैसे संभव है, तो उनका जवाब बेहद स्पष्ट था। उन्होंने कहा कि सेक्युलरिज्म कोई पश्चिमी विचार नहीं है जिसे हम पर थोपा गया हो, बल्कि यह शासन चलाने की एक जरूरी पद्धति है। राज्य की सत्ता चलाने वाली व्यवस्था को हमेशा सेक्युलर ही रहना होगा। उनका मानना है कि सरकार का काम किसी विशेष पूजा पद्धति या धर्म के आधार पर चलना नहीं, बल्कि कानून का पालन कराना है। संघ प्रमुख ने स्पष्ट कर दिया कि राज्य को पंथनिरपेक्ष होना ही चाहिए और उसका संचालन संविधान के नियमों से ही होगा।
मोहन भागवत ने हिंदुत्व की परिभाषा को पूजा-पाठ के सीमित दायरे से बाहर निकालकर उसे एक जीवन जीने का तरीका बताया है। उन्होंने युवाओं और समाज के सामने एक बड़ी लकीर खींचते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति मंदिर नहीं जाता है, तो इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि वह हिंदू नहीं है। केवल कर्मकांड करना या पूजा करना ही धर्म का प्रमाण नहीं है। संघ प्रमुख ने स्पष्ट किया कि बाहरी दिखावे से ज्यादा महत्वपूर्ण आपका आंतरिक आचरण है। हम किसी को सिर्फ इसलिए हिंदू न होने का सर्टिफिकेट नहीं दे सकते क्योंकि वह रोज मंदिर नहीं जाता। हिंदुत्व को रिलिजन से ज्यादा एक जीवन पद्धति मानना ही संघ की विचारधारा है।
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आज की तर्कशील और आधुनिक युवा पीढ़ी को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि धर्म आपके व्यवहार में झलकना चाहिए, न कि सिर्फ कर्मकांडों में। उन्होंने समझाया कि कर्मकांडों से पहले कार्य और आचरण आता है। अगर कोई युवा सच बोलता है, अनुशासित है, दूसरों की मदद करता है और अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित है, तो वही सच्चा हिंदू है। चाहे वह रोज मंदिर जाकर घंटी बजाता हो या नहीं, इससे फर्क नहीं पड़ता। मोहन भागवत के अनुसार, सुरक्षा ‘टकराव’ से नहीं बल्कि ‘सद्भाव’ से आएगी। अगर राज्य बिना तुष्टिकरण के कानून से चले और समाज अपने आचरण में कर्तव्य का पालन करे, तो यही असली धर्म है।






