के. कामराज (फोटो-सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में किंग तो कई हुऐ हैं, लेकिन किंगमेकर सिर्फ रहे है। के. कामराज, एक ऐसा नेता जो अगर चाहता, तो भारत के सबसे ताकतवर पद पर काबिज हो सकता था। जिसने अकेले मोरारजी देसाई को दो बार प्रधानमंत्री बनने से रोका और पहले लाल बहादुर शास्त्री, फिर इंदिरा गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाया। जिनकी सादगी और दूरदर्शिता से प्रभावित होकर पंडित नेहरू ने उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। आइए आज उनके जन्मदिन के मौके पर आपको उनसे जुड़े कुछ किस्से बताते हैं।
1964 में जब पंडित नेहरू का निधन हुआ, तब कांग्रेस पार्टी और देश दोनों ही अनिश्चितता के दौर में थे। उस समय पार्टी अध्यक्ष के रूप में कामराज के पास इतनी ताकत थी कि वे खुद प्रधानमंत्री बन सकते थे। लेकिन उन्होंने सत्ता की कुर्सी के बजाय देश के भविष्य को प्राथमिकता दी और लाल बहादुर शास्त्री को आगे बढ़ाया।
1966 में जब शास्त्री जी का अचानक निधन हुआ, तब एक बार फिर कामराज के पास प्रधानमंत्री बनने का मौका था। मगर इस बार भी उन्होंने निजी महत्वाकांक्षा को दरकिनार किया और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई। इसीलिए उन्हें ‘किंगमेकर’ कहा गया जो खुद राजा बन सकता था, लेकिन दूसरों को गद्दी तक पहुंचाता रहा।
1954 से 1963 तक, जब कामराज मद्रास राज्य (अब तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे क्रांतिकारी फैसले लिए जो आज भी मिसाल हैं। उन्होंने ‘मिड-डे मील योजना’ की शुरुआत की, जिससे हजारों गरीब बच्चे स्कूल आने लगे। उनका मानना था, “अगर एक गरीब बच्चा भूखा है, तो उसे पहले खाना दो, फिर किताब।” यही सोच उन्हें आम नेताओं से अलग करती थी। कामराज द्वारा शुरू की गई यह योजना इतनी सफल रही कि बाद में भारत सरकार ने इसे पूरे देश में लागू किया।
1963 में जब कामराज को लगा कि कांग्रेस कमजोर हो रही है, तब उन्होंने एक साहसिक निर्णय लिया ‘कामराज योजना’ पेश की। इस योजना के तहत उन्होंने खुद समेत कई वरिष्ठ नेताओं से अपील की कि वे सरकारी पदों से इस्तीफा देकर पार्टी संगठन को मजबूत करें। खुद इसकी शुरुआत करते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और पूरी तरह पार्टी को पुनर्गठित करने में लग गए। उनकी इसी दूरदर्शिता को देखकर प्रधानमंत्री नेहरू ने उन्हें दिल्ली बुलाकर कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया।
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लेखक बाला जयरामन की किताब “Kamaraj: The Kingmaker” के अनुसार, कामराज का मानना था कि देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए किसी व्यक्ति को अच्छी अंग्रेज़ी और हिन्दी का ज्ञान होना चाहिए। लेकिन खुद कामराज की हिन्दी और अंग्रेज़ी उतनी अच्छी नहीं थीं। वे एक गरीब परिवार से आते थे और उनकी स्कूली शिक्षा भी अधूरी रही थी। यही कारण रहा कि वे कभी प्रधानमंत्री नहीं बने जबकि उनकी योग्यता और नेतृत्व क्षमता उस पद के बिल्कुल योग्य थी।