महारानी वेलु नाचियार (सोर्स- सोशल मीडिया)
Rani Velu Nachiyar: आजादी की पूर्व संध्या पर अभी कुछ देर पहले देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्र के नाम संबोधन सुना। एक यह दौर है कि एक आदिवासी महिला देश की प्रथम नागरिक है और एक वह दौर था जब रानियों को भी गुलामी का दंश झेलना पड़ा। लेकिन भारतीय नारियों के शौर्य और सामर्थ्य की सशक्त बानगी अंग्रेजों को भी भयभीत कर देती थी।
‘एक कहानी आजादी की’ आखिरी किश्त में दास्तान उस भारतीय वीरांगना रानी की जिसने अंग्रेजों से हार के बाद महाराणा प्रताप की तरह जंगल की खाक छानी और लौटकर जिस तरह राणा ने मुगलों से अपना किला वापस छीन लिया था ठीक उसी तरह उन्होंने भी अपना साम्राज्य अंग्रेजों से वापस ले लिया।
वर्ष 1772 की बात है जब ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं ने शिवगंगा पर कब्ज़ा कर लिया था। राजा थेवर अपने राज्य की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। रानी वेलु को अपनी नवजात बेटी के साथ जंगलों में भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। अपने पति की शहादत के बाद, वह लंबे समय तक डिंडीगुल के जंगलों में रहीं और मैसूर के शासक हैदर अली की मदद से अपनी सेना का निर्माण शुरू किया। लगभग आठ वर्षों के बाद, रानी बदला लेने और शिवगंगा को अत्याचारी अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए अपने राज्य लौट आईं।
रामनाथपुरम के राजा चेल्लमुथु विजयरगुनाथ सेतुपति की इकलौती संतान रानी वेलु नाचियार का जन्म 3 जनवरी, 1730 को हुआ था। रानी वेलु नाचियार का पालन-पोषण एक राजकुमार की तरह हुआ था। किसी भी राजा की तरह, रानी वेलु नाचियार को भी अस्त्र-शस्त्र का पूर्ण ज्ञान था। उन्होंने बचपन से ही युद्ध कला, घुड़सवारी, तीरंदाजी, सिलंबम (लाठी युद्ध) का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। रानी वेलु नाचियार को न केवल हिंदी, बल्कि तमिल, अंग्रेजी, फ्रेंच और उर्दू जैसी कई भाषाओं का भी पूर्ण ज्ञान था।
अंग्रेजों को परास्त करने के लिए रानी वेलु नाचियार ने केवल महिलाओं की एक सेना बनाई थी, जिसका नाम उन्होंने उदियाल रखा था। एक ऐसी वीर महिला जिसे अंग्रेजों के चंगुल से बचने के लिए अपना सब कुछ छोड़ना पड़ा था। उन्होंने इन आठ वर्षों के कठिन समय में अपनी महिला सेनाओं को विभिन्न प्रकार के युद्धों में प्रशिक्षित किया। इसी दौरान, रानी के विश्वासपात्र, मरुदु बंधुओं ने भी क्षेत्र के वफादारों के बीच एक सेना खड़ी करना शुरू कर दिया।
महारानी वेलु नाचियार (सोर्स- सोशल मीडिया)
अपनी महिला सेना के साथ, रानी वेलु ने धीरे-धीरे शिवगंगा प्रांत पर पुनः विजय प्राप्त करना शुरू किया और अंततः अंग्रेजों को उनके किले में प्रवेश करके एक-एक करके परास्त किया। अपने किले पर कब्ज़ा करना रानी के लिए आसान नहीं था, क्योंकि रानी वेलु के पास किले को चारों ओर से घेरने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं था। लेकिन यही वह क्षण था जब ‘उदयाल सेना’ की वीर सेनापति कुइली आगे आईं।
कुइली ने किले में प्रवेश करने की योजना बनाई। वह कुछ अन्य महिला सैनिकों के साथ पूजा करने के बहाने ग्रामीण महिलाओं का वेश धारण करके किले में प्रवेश कर गईं। अंदर पहुंचकर, उन्होंने सही समय का इंतज़ार किया और अपनी घातक तलवारों से हमला करना शुरू कर दिया।
यह भी पढ़ें: एक कहानी आजादी की: जंग-ए-आजादी का वो गुमनाम योद्धा, जिसने मौत के घाट उतार दिए 200 अंग्रेज
इस अचानक हुए हमले से अंग्रेज़ दंग रह गए। कुछ ही देर में, इन निडर महिला योद्धाओं ने रक्षकों को मारकर किले के द्वार खोल दिए। यही वह क्षण था जिसका रानी वेलु नाचियार को लंबे समय से इंतज़ार था। उनकी सेना बिजली की गति से किले में घुस गई और एक भीषण खूनी युद्ध लड़ा और अंग्रेजों में खौफ पैदा कर दिया।
कहा जाता है कि इसी युद्ध के दौरान, महिला सेनापति कुइली की नज़र अंग्रेजों के गोला-बारूद पर पड़ी। जिसके बाद उसने किले के मंदिर में रखे घी को अपने शरीर पर उड़ेल लिया और खुद को आग लगा ली। आग में झुलसती हुई कुइली हाथ में तलवार लिए गोला-बारूद के भंडार की ओर बढ़ रही थी। पहले उसने द्वार पर पहरा दे रहे सैनिकों को मार डाला और फिर गोला-बारूद के भंडार में कूद गई। कुइली ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए खुशी-खुशी अपना बलिदान दे दिया।
इस युद्ध में अंग्रेजों ने आत्मसमर्पण कर दिया और रानी वेलु स्वतंत्रता से पहले 1780 में अपना राज्य पुनः प्राप्त करने में सफल रहीं। रानी वेलु नाचियार संभवतः पहली भारतीय रानी हैं जिन्होंने अंग्रेजों को हराकर अपना राज्य वापस जीता।