धनखड़ के सुप्रीम कोर्ट को 'सुपर संसद' कहने पर मचा घमासान! उपराष्ट्रपति से भिड़े कपिल सिब्बल, बताया असंवैधानिक
नई दिल्ली: राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा न्यायपालिका को लेकर की गई टिप्पणियों की आलोचना करते हुए शुक्रवार को कहा कि यह ‘‘असंवैधानिक” है और राज्यसभा के किसी सभापति को कभी भी इस तरह का ‘‘राजनीतिक बयान” देते नहीं देखा गया था। सिब्बल ने यह भी कहा कि लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच समान दूरी बनाए रखते हैं और वे ‘‘पार्टी प्रवक्ता” नहीं हो सकते।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हर कोई जानता है कि लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी बीच में होती है। वह सदन के अध्यक्ष होते हैं, किसी एक पार्टी के अध्यक्ष नहीं। वे भी वोट नहीं करते हैं, वे केवल तब वोट करते हैं जब बराबरी होती है। उच्च सदन के साथ भी यही बात है।
उन्होंने कहा कि आप विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच समान दूरी पर हैं।” सिब्बल का कहना था, ‘‘आप जो कुछ भी कहते हैं वह समान दूरी बनाए रखने वाली होनी चाहिए। कोई भी वक्ता किसी पार्टी का प्रवक्ता नहीं हो सकता। मैं यह नहीं कहता कि वह (धनखड़) हैं, लेकिन सैद्धांतिक रूप में कोई भी अध्यक्ष किसी भी पार्टी का प्रवक्ता नहीं हो सकता। अगर ऐसा लगता है तो आसन की गरिमा कम हो जाती है।”
राज्यसभा के सभापति धनखड़ ने राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए न्यायपालिका द्वारा समयसीमा निर्धारित करने और ‘सुपर संसद’ के रूप में कार्य करने को लेकर बृहस्पतिवार को सवाल उठाते हुए कहा था कि उच्चतम न्यायालय लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘परमाणु मिसाइल’ नहीं दाग सकता।
धनखड़ ने आगे कहा कि लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार सबसे महत्वपूर्ण होती है और सभी संस्थाओं को अपनी सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए। उन्होंने साफ कहा कि कोई भी संस्था संविधान से ऊपर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा।
दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक फैसला लिया था। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा द्वारा भेजे गए विधेयक पर एक महीने के भीतर फैसला लेना होगा। इस फैसले के दौरान कोर्ट ने राज्यपालों द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की। यह आदेश 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया।
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11 अप्रैल की रात वेबसाइट पर अपलोड किए गए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्यपालों द्वारा भेजे गए बिल के मामले में राष्ट्रपति को पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और न्यायपालिका बिल की संवैधानिकता तय करेगी।