जस्टिश यशवंत वर्मा (सोर्स- सोशल मीडिया)
Justice Yashwant Verma: सरकार ने जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और इसके तहत सांसदों के हस्ताक्षर जुटाए जा रहे हैं। जस्टिस वर्मा उस समय विवादों में आ गए थे जब मार्च में दिल्ली स्थित उनके आवास पर आग लगने की घटना के बाद जली हुई नकदी बरामद हुई थी।
सूत्रों के अनुसार, कई लोकसभा सांसदों के हस्ताक्षर पहले ही लिए जा चुके हैं, जिससे संकेत मिलता है कि यह प्रस्ताव संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में लाया जा सकता है। लोकसभा में ऐसे किसी भी प्रस्ताव के पारित होने के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर ज़रूरी हैं, जबकि राज्यसभा में इसके लिए 50 सांसदों का समर्थन आवश्यक होता है।
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू पहले ही कह चुके हैं कि 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मॉनसून सत्र में जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार इस मुद्दे पर विपक्षी दलों से रायशुमारी करेगी ताकि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुटता का संदेश दिया जा सके। वहीं, कांग्रेस ने पहले ही 50 से ज्यादा सांसदों के साइन करा लिए हैं।
जस्टिस यशवंत वर्मा वर्तमान समय में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज हैं। कैशकांड सामने आने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय से उनका तबादला कर दिया गया था। लेकिन इसे लेकर जब बवाल और बढ़ा तो उन्हें किसी भी तरह का न्यायिक कार्य सौंपने पर रोक लगा दी गई।
नकदी मामले की जाँच कर रहे सुप्रीम कोर्ट के पैनल की रिपोर्ट 19 जून को जारी की गई। 64 पृष्ठों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और उनके परिवार का स्टोर रूम पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों के पैनल ने 10 दिनों तक जाँच की।
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जस्टिस वर्मा ने आग लगने के दौरान स्टोर रूम से कैश मिलने की घटना को षड्यंत्र बताया था। लेकिन उन्होंने पुलिस में किसी तरह की रिपोर्ट नहीं की। इतना ही नहीं चुपचाप इलाहाबाद हाईकोर्ट में तबादला भी ले लिया। इसके अलावा जस्टिस वर्मा इस नकदी का हिसाब भी नहीं दे पाए।