मनमोहन सिंह (सौजन्य: सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार रात निधन हो गया। पूर्व पीएम को तबीयत बिगड़ने के बाद देर शाम दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। 92 वर्षीय सिंह लंबे समय से बीमार थे। गुरुवार को उन्हें सांस लेने में तकलीफ और बेचैनी के बाद एम्स में भर्ती कराया गया था। मनमोहन सिंह दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे। वह लंबे समय से स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे। इससे पहले भी उन्हें कई बार स्वास्थ्य कारणों से अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
मनमोहन सिंह करीब 33 साल तक राज्यसभा सांसद रहे। पीएम रहते हुए भी वह राज्यसभा के सदस्य थे। आमतौर पर लोग प्रधानमंत्री रहते हुए लोकसभा से चुने जाते हैं। लेकिन मनमोहन सिंह ने सिर्फ एक बार ही लोकसभा चुनाव लड़ा था। आइए जानते हैं उस चुनाव की पूरी कहानी…
नरसिम्हा राव सरकार में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय को अच्छे से चलाया। बड़े-बड़े नेता उनकी तारीफ करते थे। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पीएम नरसिम्हा राव से अच्छे संबंध थे। 1999 का लोकसभा चुनाव आ गया था। तब पूर्व पीएम मनमोहन को लगा कि बड़े नेता उनके पक्ष में हैं, उनका काम भी अच्छा है।
इसलिए चुनावी राजनीति में उतरने का यही सही समय था। उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना लिया था। मनमोहन सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए दक्षिण दिल्ली की लोकसभा सीट चुनी। यहां मुस्लिम और सिखों की आबादी मिलाकर करीब 50 फीसदी थी। यही सोचकर मनमोहन सिंह को लगा कि ये सीट सबसे उपयुक्त है, वो चुनाव जीत जाएंगे।
बीजेपी ने दिल्ली से बीजेपी के वरिष्ठ नेता वीके मल्होत्रा को मनमोहन सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा था। उनकी मनमोहन सिंह जैसी देशव्यापी पहचान नहीं थी। मल्होत्रा ने जनसंघ से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। लेकिन मनमोहन सिंह करीब 30 हजार वोटों से चुनाव हार गए। इस दौरान बीजेपी के विजय मल्होत्रा को 261230 वोट मिले थे। जबकि मनमोहन को 231231 वोट मिले थे। ये चुनावी हार मनमोहन के लिए सदमे की तरह थी। उन्हें लगने लगा था कि उनका चुनावी करियर शुरू होते ही खत्म हो गया।लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
मनमोहन अपनी राज्यसभा सीट पर बने रहे। उस दौरान पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस पार्टी से 20 लाख रुपये मिले थे। तब कई फाइनेंसरों ने उनसे संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन वे दूर रहे। मनमोहन को लगा कि पैसे की क्या जरूरत है, पार्टी कार्यकर्ता तो उन्हें आसानी से चुनाव जिता देंगे।
चंदा लेना मनमोहन के सिद्धांतों के खिलाफ था। तभी एक नेता ने आकर मनमोहन से कहा कि हम चुनाव हार रहे हैं। कार्यकर्ता हमारे साथ नहीं हैं, वे पैसे मांग रहे हैं। हमें चुनाव कार्यालय खोलना है, लोगों के खाने-पीने का इंतजाम करना है। यह सब बिना पैसे के नहीं हो सकता। थोड़ा सोचने के बाद मनमोहन सिंह ने सालों से चली आ रही व्यवस्था को अपनाया। उन्होंने चुनाव के लिए चंदा इकट्ठा किया। उन्होंने फाइनेंसरों से भी मुलाकात की। इसके बाद ही उनका चुनाव हुआ। चुनाव के बाद मनमोहन ने पार्टी फंड से बचे हुए 7 लाख रुपये लौटा दिए।
डॉ. मनमोहन सिंह के निधन से अन्य जुड़ी खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…
मनमोहन सिंह 3 अप्रैल को राज्यसभा से रिटायर हुए। वे पहली बार 1991 में असम से राज्यसभा पहुंचे थे। तब से वे करीब 33 साल तक राज्यसभा के सदस्य रहे। वे 2019 में छठी और आखिरी बार राजस्थान से राज्यसभा सांसद बने थे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी मनमोहन सिंह को उनके रिटायरमेंट पर एक पत्र लिखा था। अपने पत्र में खड़गे ने लिखा था कि- अब आप सक्रिय राजनीति में नहीं रहेंगे, लेकिन जनता के लिए आपकी आवाज उठती रहेगी। संसद को आपके ज्ञान और अनुभव की कमी खलेगी।