जॉर्ज फर्नांडिस (सोर्स- सोशल मीडिया)
नागपुर: एक 16 साल का लड़का जिसे पादरी बनने के लिए चर्च भेजा गया। एक टैक्सी यूनियन का नेता जिसने पूरे देश में रेल रोक दी। एक 37 साल का नौजवान जिसने महाराष्ट्र की दक्षिण मुंबई सीट से बाल ठाकरे जैसे रुतबे वाले सदाशिव कानोजी पाटिल को हराया। जो जेल में रहते हुए भी 3 लाख वोटों से लोकसभा चुनाव जीता और जिसे कभी ‘द जाइंट किलर’ कहा जाता था।
हम बात कर रहे हैं भारतीय राजनीति के दिग्गज जॉर्ज फर्नांडिस की। आज यानी मंगलवार 3 जून को देश उनकी 95वीं जयंती मना रहा है। जॉर्ज को भले भी भारतीय राजनीति का आला मुकाम नहीं हासिल हुआ लेकिन उन्होंने जो कुछ कमाया वह सियासत में किसी-किसी को ही मिलता है।
जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म 3 जून 1930 को मैंगलोर में हुआ था। वे अपने 6 भाइयों में सबसे बड़े थे। 16 साल की उम्र में उन्हें कैथोलिक पादरी बनने के लिए बेंगलुरु (तब बैंगलौर) की चर्च में भेजा गया था। वे वहां दो साल तक रहे। लेकिन देश के आजाद होते ही वे वहां से भाग गए।
एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मैं चर्च से तंग आ चुका था। मैं देखता था कि वहां के पादरी की कथनी और करनी में बहुत अंतर होता था और ऐसा सिर्फ एक धर्म के साथ ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के साथ होता था।
यह 1973 का समय था और इस समय से पहले और आजादी के बाद तीन वेतन आयोग पारित हो चुके थे, लेकिन रेलवे कर्मचारियों के वेतन में कोई ठोस वृद्धि नहीं हुई थी। इसी बीच नवंबर 1973 में जॉर्ज फर्नांडिस ऑल इंडिया रेलवेमेन फेडरेशन (AIRF) के अध्यक्ष बन गए। उनके नेतृत्व में यह निर्णय लिया गया कि वेतन वृद्धि की मांग को लेकर हड़ताल की जाए।
इसके लिए एक राष्ट्रीय स्तर की समन्वय समिति बनाई गई और 8 मई 1974 को बॉम्बे में हड़ताल शुरू हुई और इस हड़ताल ने न केवल मुंबई को दिया, बल्कि पूरा देश ठप हो गया। इस हड़ताल में करीब 15 लाख लोगों ने हिस्सा लिया। बाद में कई अन्य यूनियनें भी इस हड़ताल में शामिल हो गईं और हड़ताल ने एक बड़ा रूप ले लिया।
जॉर्ज फर्नांडिस (सोर्स- सोशल मीडिया)
जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में टैक्सी चालक, बिजली यूनियन और ट्रांसपोर्ट यूनियन भी इस हड़ताल में शामिल हो गए। मद्रास कोच फैक्ट्री के करीब 10 हजार कर्मचारी भी हड़ताल के समर्थन में सड़क पर उतर आए। गया में रेलवे कर्मचारियों ने अपने परिवारों के साथ पटरियों पर कब्जा कर लिया। हड़ताल का असर पूरे देश में दिखाई दिया और पूरा देश थम सा गया।
हड़ताल के बढ़ते असर को देखते हुए सरकार ने हड़तालियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया। सरकार ने कई जगहों पर रेलवे ट्रैक खोलने के लिए सेना को तैनात किया। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट कहती है कि हड़ताल को तोड़ने और इसे अप्रभावी बनाने के लिए 30,000 से ज्यादा मजदूर नेताओं को जेल में डाल दिया गया। हालांकि, तीन हफ्ते बाद 27 मई को बिना कोई कारण बताए समन्वय समिति ने हड़ताल वापस लेने की घोषणा कर दी।
दरअसल, इसके तहत विरोध में आवाज उठाने वाले नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जा रहे थे। इसमें कई विपक्षी नेता शामिल थे। इसमें 24 अन्य नेताओं के साथ जॉर्ज फर्नांडिस भी शामिल थे। इसके तहत उन पर आपातकाल के खिलाफ सरकारी संस्थानों और रेलवे ट्रैक को उड़ाने के लिए डायनामाइट की तस्करी करने का आरोप था। उन पर सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विद्रोह करने का आरोप था।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था। उस समय जॉर्ज फर्नांडिस क्रूर सत्ता के खिलाफ योद्धा बनकर उभरे और इंदिरा को चुनौती दी। इस दौरान जॉर्ज को गिरफ्तार कर के जेल में भी डाला गया। 1976 में उन्हें गिरफ्तार कर दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया।
बड़ौदा डायनामाइट मामले की जांच सीबीआई के हाथ में थी। सीबीआई ने ही घटनास्थल बड़ौदा बताया था। जेल के बाहर यह आशंका जताई जा रही थी कि सरकार जेल के अंदर ही उनकी हत्या करवा सकती है। जर्मनी, नॉर्वे और ऑस्ट्रिया के राष्ट्राध्यक्षों ने इंदिरा गांधी के सामने जॉर्ज की सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता जाहिर की।
बड़ौदा डायनामाइट मामले में जब जॉर्ज फर्नांडिस को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में पेश किया गया तो जेएनयू के करीब एक दर्जन छात्रों ने नारे लगाए कि जेल का गेट तोड़ो, जॉर्ज फर्नांडिस को रिहा करो। इस दौरान देश में राजनीतिक सरगर्मी चरम पर थी। दूसरी ओर देश चुनाव की ओर भी बढ़ रहा था।
इस चुनाव में कांग्रेस अपने विरोधियों को चुप कराने और चुनाव जीतने की पूरी कोशिश कर रही थी। लेकिन नतीजा उसके विपरीत रहा। 1977 में जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल में रहते हुए मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा। पूरे चुनाव के दौरान वे एक बार भी अपने निर्वाचन क्षेत्र में नहीं जा सके और उस दौरान जॉर्ज की हथकड़ी लगी एक तस्वीर फैल गई।
कुछ ही समय में वह तस्वीर प्रतिरोध का प्रतीक बन गई और लोगों के दिलों में उतर गई। तीस हजारी कोर्ट की वही मशहूर तस्वीर गली-मोहल्लों में घूमनी शुरू हो गई, जनता ने खुद ही पैसे इकट्ठा करके प्रचार किया। इस चुनाव में जॉर्ज का एक भी पैसा खर्च नहीं हुआ। नतीजतन जॉर्ज करीब तीन लाख वोटों से चुनाव जीत गए। सत्ता में आई जनता सरकार ने बड़ौदा डायनामाइट केस को खत्म कर दिया। इस सरकार में जॉर्ज को उद्योग मंत्री बनाया गया।
जॉर्ज से जुड़ी एक घटना 1980 की है, जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद लोकसभा उपचुनाव की घोषणा हो चुकी थी। जॉर्ज फर्नांडिस अपने संसदीय क्षेत्र मुजफ्फरपुर पहुंचे थे। कंपनीबाग मैदान में एक सभा आयोजित थी। जॉर्ज साहब सभा में उसी अंदाज में बोल रहे थे, जैसे उन्होंने जनता पार्टी की सरकार से इस्तीफा देने के बाद लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में बोला था।
जॉर्ज फर्नांडिस की हथकड़ी वाली तस्वीर (सोर्स- सोशल मीडिया)
अचानक भीड़ में से कुछ युवकों ने विरोध में नारे लगाने शुरू कर दिए और मंच पर ईंट-पत्थर फेंकने लगे। लेकिन जॉर्ज नहीं रुके। वे बोलते रहे, उनका भाषण हमेशा दमदार होता था। सभा में एक वक्ता हिंद केशरी यादव (जो बाद में मंत्री बने) के सिर पर ईंट का एक टुकड़ा लगा। निशाना जॉर्ज थे, लेकिन वे बच गए। जॉर्ज अपना भाषण खत्म करने के बाद ही बैठे।
1998 में जब जॉर्ज फर्नांडिस देश के रक्षा मंत्री थे तभी प्रधानमंत्री अटल बिहारी के नेतृत्व में पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण किया गया था। रक्षा मंत्री रहते हुए जॉर्ज फर्नांडिस ने 32 बार सियाचिन का दौरा किया। 1999 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध चल रहा था और जॉर्ज फर्नांडिस खुद देश के जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए कारगिल के दौरे पर थे। देश के रक्षा मंत्री को अपने बीच पाकर जवानों का उत्साह चरम पर था। जवान उनसे हाथ मिलाने के लिए दौड़े चले आए।
जीवन के आखिरी दौर में 88 वर्षीय जॉर्ज फर्नांडिस लंबे समय से बीमार थे और अल्जाइमर से पीड़ित थे। यही वजह है कि वे लंबे समय से सार्वजनिक जीवन से दूर थे। 29 जनवरी 2019 को जॉर्ज फर्नांडिस ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।