
अश्विनी वैष्णव, (केंद्रीय रेल मंत्री)
नई दिल्ली: भारतीय रेलवे सिग्नल एवं दूरसंचार अनुरक्षक संघ (आईआरएसटीएमयू) ने आरोप लगाया है कि रेलवे में पदोन्नति के साथ लगभग अनिवार्य स्थानांतरण भी होता है और इसमें पक्षपात की बड़ी भूमिका होती है। आईआरएसटीएमयू ने 27 फरवरी को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को लिखे पत्र में इन विसंगतियों को उजागर किया और सुझाव दिया कि कर्मचारियों को रिक्त पदों के लिए अपनी प्राथमिकताएं देने की अनुमति दी जानी चाहिए और इसे ध्यान में रखते हुए निर्णय लिए जाने चाहिए।
आईआरएसटीएमयू के महासचिव आलोक चंद्र प्रकाश ने पत्र में कहा कि हालांकि रेलवे में पदोन्नति के नियम सुस्थापित हैं, लेकिन बहुत से कर्मचारी पदोन्नति लेने से इनकार कर देते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि उन्हें दूरदराज के स्थानों और अवांछनीय स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में आलोक चंद्र प्रकाश ने कहा कि केवल वे ही वांछित स्थान पाते हैं जो अपने वरिष्ठों के करीबी होते हैं। जबकि बाकी को दूरदराज के स्थानों पर भेज दिया जाता है जिससे उनका पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और कभी-कभी बर्बाद हो जाता है। आईआरएसटीएमयू का मानना है कि ऐसी पदस्थापना के कारण मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेलने वाले कर्मचारी संगठन को अपना शत प्रतिशत नहीं दे पाते और अक्सर आधे-अधूरे मन से काम करते हैं।
आईआरएसटीएमयू के महासचिव ने कहा कि इसलिए मैं माननीय मंत्री जी से आग्रह करता हूं कि वे ऐसी व्यवस्था लागू करें जिसके तहत पदोन्नति पाने वाले कर्मचारियों को रिक्त पदों के बारे में सूचित किया जाए और उन्हें ऐसे सभी पदों के लिए प्राथमिकता बताने की अनुमति दी जाए। आलोक चंद्र प्रकाश के अनुसार, इससे न केवल पदोन्नति और स्थानांतरण में पारदर्शिता आएगी बल्कि परिचालन दक्षता तथा काम के प्रति सम्मान भी बढ़ेगा।
देश की अन्य खबरों के लिए यहां क्लिक करें…
उन्होंने आगे कहा कि माननीय मंत्री जी रेलवे कर्मचारियों की भलाई के बारे में बहुत चिंतित हैं और मुझे उम्मीद है कि वह इन सुझावों और पूरे मामले को बहुत सकारात्मक तरीके से लेंगे। मुझे उम्मीद है कि रेलवे बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारी पदोन्नति और स्थानांतरण की प्रणाली में व्याप्त पूर्वाग्रहों पर गौर करने की पहल करेंगे।






