उत्तरकाशी में बादल फटने के बाद की तस्वीरें (सोर्स- सोशल मीडिया)
Cloudburst: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में मंगलवार की दोपहर भयावह तबाही आ गई। यहां ट्रैकिंग के लिए मशहूर धराली के खीरगंगा में बादल फटने की वजह से अचानक नाले में आया मलबे का ऊफान अपने साथ गांव और कई जिंदगियों को अपने साथ बहा ले गया। हादसे के रूह कंपा देने वाले वीडियोज और तस्वीरें सामने आई हैं।
इस डरावनी तबाही में पलक झपकते ही सारा का सारा इलाका बह गया। घर तो ऐसे तबाह हुए जैस वो ईंट और सीमेंट से नहीं बल्कि ताश के पत्तों से बनाए गए थे। बाजार, बस्तियां, इंसान और मवेशी सब के सब बह गए। इस घटना में अब तक 4 लोगों के मरने और बड़ी संख्या में लोगों के लापता होने की ख़बर है।
इस हादसे ने एक बार फिर उन प्रश्नों को जन्म दे दिया है, जिसमें तमाम लोग यह पूछते हैं कि बादल फटना क्या होता है? क्या आसमान से समूचा बादल एक साथ पानी का बड़ा बनकर जमीन पर गिर जाता है? बादल कैसे, कब और क्यों फटता है? तो चलिए इन सभी प्रश्नों का उत्तर इस रिपोर्ट के जरिए हम आपको देते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाओं में एक दशक के भीतर तेज़ी से वृद्धि हुई है। एक अनुमान के अनुसार, अब उत्तराखंड और हिमाचल के पहाड़ों में डेढ़ गुना से भी ज़्यादा बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं। ज़्यादातर बादल फटने की घटनाएं मानसून की बारिश के दौरान होती हैं।
बादल फटने की सांकेतिक तस्वीर (सोर्स- सोशल मीडिया)
बादल फटना या बादल फटना का अर्थ है किसी सीमित क्षेत्र में बहुत कम समय में अचानक बहुत तेज़ बारिश होना। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, यदि 20-30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक घंटे में 100 मिमी बारिश होती है, तो उसे बादल फटना कहते हैं। आम बोलचाल में, एक ही स्थान पर अचानक भारी बारिश को बादल फटना कहते हैं।
जब तापमान बढ़ने के कारण भारी मात्रा में नमी वाले बादल एक जगह इकट्ठा होते हैं, तो पानी की बूंदें आपस में मिल जाती हैं। इससे बूंदों का भार इतना बढ़ जाता है कि बादल का घनत्व बढ़ जाता है। इससे एक सीमित क्षेत्र में अचानक भारी बारिश होती है। इसे बादल फटना कहते हैं।
प्रतीकात्मक चित्र (सोर्स- सोशल मीडिया)
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में क्षेत्रीय जल चक्र में बदलाव भी बादल फटने का एक प्रमुख कारण है। इसीलिए यहां बादल पानी में बदल जाते हैं और भारी बारिश करने लगते हैं। दूसरे शब्दों में, जब गर्म मानसूनी हवाएं ठंडी हवाओं के संपर्क में आती हैं, तो बड़े बादल बनते हैं। हिमाचल और उत्तराखंड में ऐसा पर्वतीय कारकों के कारण भी होता है।
विज्ञान के अनुसार, जब नमी युक्त हवा किसी पहाड़ी क्षेत्र में पहुंचती है, तो बादलों का एक ऊर्ध्वाधर स्तंभ बन जाता है। इसे क्यूम्यलोनिम्बस बादल भी कहते हैं। ऐसे बादल भारी वर्षा, गरज और बिजली भी गिराते हैं। बादल एक छोटे से क्षेत्र में भारी वर्षा करते हैं। बादल फटने की घटनाएं अधिकतर समुद्र तल से 1,000 मीटर से 2,500 मीटर की ऊंचाई पर होती हैं।
तेज़ी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण जंगलों में लगने वाली आग, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और कूड़े-कचरे को जलाना, बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पहाड़ों पर ज़्यादा वाहनों का आना और जंगलों में अवैध निर्माण भी इसका कारण बन रहे हैं।
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मौसम विज्ञान केंद्र की गाइडलाइंस के मुताबिक बादल फटने के दौरान ढलान वाले इलाकों में नहीं रहना चाहिए। इसके साथ ही बरसात के दिनों में नदी और नालों के किनारों पर रुकना नहीं चाहिए। ऐसी घटनाओं से निजात पाने के लिए पौधरोपण कर जलवायु परिवर्तन को संतुलित करने की दिशा में काम करना चाहिए।